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________________ ६५८ चाणक्यसूत्राणि शीर्षक सूची पृष्ठ शीर्षक सूची पृष्ठ अभुत्वरक्षा राज्यसंस्थाका सार्व- विद्या यशाकरी । २६२ दिक कर्तव्य, यश मानवका अमर देह कतव्यमें समयका महत्व २४३ सबके स्वार्थको अपना समझना नीव के ज्ञान का नीच उपयोग २४४ सत्पुरुषता है चरित्रक' जीवनव्यापी प्रभाव, शास्त्रकी उपकारिता जीवन में अन्नका महत्वपूर्ण नीचसे विद्याग्रहण हानिकारक २६७ स्थान २४५ अश्लील भाषण अग्राह्य राज्यसंस्था का सबसे बड़ा शत्रु, संघटन म्लेच्छों से शिक्षीय २७० निकम्मोंका भखों मरना शत्रुओंका रणकौशल शिक्षणीय २७१ निश्चित ४६ कल्याणकारिणी परिस्थिति बना. सुधाकी विकरालता. इन्द्रियों के देनेवालेका सम्मान २७३ दुरुपयोगका दुष्परिणाम २४७, अपने प्रभावक्षेत्र में हो मनुष्य की प्रभु बनाने योग्य, लोभीका प्रभ बनाने से हानि १४९ आर्य सदाचार पालनीय २७9 आश्रयणीय प्रभुके गुण, मर्यादोलंघन अकर्तव्य, गुणी समान वाहसे गार्हस्थ्य पुरुष के अमन्य धन २७८ जीवन को दुखदता २५० सचरित्र तपन्विनी स्त्रियाँ राष्ट्रक अनुपम रत्न मनुप्यका सबसे बडा वरी २५२ गुणी स्त्री पुरुषों की दुर्लभता समासभा में वायुसे वाटयवहार की जका महादुर्भाग्य, नीति निन्दित आचरण जीवन की शत्रुका सर्वनाश करना मानवीय भीषण अवस्था __ कर्तव्य २५६ अलस विद्याका अनधिकारी २८१ धनहीनता से बुद्धिनाश २५७ स्त्रैण कर्तव्यहीन तथा दुःखी २८२ धनहीनता की हानि २५९ स्त्रैण स्त्रियोंसे भी अपमानित निधनों का सम्म नित धन, भ्रान्त उपायोंसे सुखान्वेषण विद्याधनका श्रेष्ठता निष्फल २८३ २५४
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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