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________________ ६३० चाणक्यसूत्राणि पीटकर देशसे बाहर निकाल डालनेवाले अपने ही बुद्धिबलसे तत्कालीन भारतीय साम्राज्यके निर्माण तथा स्थापनामें प्रमुख भाग लेनेवाले महामंत्री चाणक्यकी पर्णकुटोसे आधुनिक भारतमें प्रजातंत्री मंत्रियों के नन्दनवनकी शोभाकी भी हँसी उडानेवाले राजप्रासादो तथा इन लोगोंको मिलनेवाले इस निर्धन देशके प्राण सोख लेनेवाले लम्बे-चौडे वेतन-भत्ते मादि अगणित सुविधाओं की तुलना तो करके देखिये और फिर निर्णय कीजिये कि प्रजातंत्रका बाना पहननेवाले आपके देशके प्रजातंत्र का वास्तविक स्वरूप क्या है ? भारतका वर्तमान प्रजातंत्र नक्कारकी चोट यह घोषणा कर रहा है कि यह राज्यसंस्था राष्ट्रकी सेवाके लिये नहीं बनाई गई किन्तु राष्ट्रको ही राज्य. संस्थाको सेवाके काममें लाया जा रहा है । पाठक भाइये, सम्राट चन्द्रगुप्त के महामन्त्रीके निवासस्थानपर प्रजातंत्री दृष्टि डालें। कवि विशाखदत्त चाणक्यकी कुटीका वर्णन करते हुए लिखते हैं इदमार्यचाणक्यस्य गृहं यावत् प्रविशामि (नाटयेन प्रवि. श्यावलोक्य च ) अहो राजाधिराजमंत्रिणो गृहविभूतिः !! कुतः? अब मैं मार्य चाणक्यको कुटीमें चलूँ ( कुटीके भीतर जाकर देखकर ) ओहो ! गजाधिराजके मंत्रीके घरकी ऐसी निराली छटा ! उपलशकलमेतद भेदक गोमयानां बटुभिरुपहृतानां बर्हिषां स्तोम एषः । शरणमापि समिद्भिः शुष्यमाणाभिराभिविनमितपटलान्तं दृश्यते जीर्णकुड्यम्।। (अंक ३, श्लोक १५, मुद्राराक्षस) उसमें एक ओर कंडे तोडनेके लिये पत्थरका टुकडा पडा है, दूसरी मोर चाणक्यसे शिक्षा पाने वाले वाल विद्यार्थियोंकी लाई हुई कुशायें बिछी हुई हैं इसके जीर्णशीर्ण भीतोंवाले झुके हुए छप्पर पर होमाग्निकी समिधायें सूख रही हैं। ऊपर हम पाश्चात्य साम्राज्यवादके विरोधमें जन्म लेनेवाले पाश्चात्य समाजवादको उसीका नामान्तर कहकर उसके दोष दिखा भाये हैं और
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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