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________________ इतिहास लेखकोंका उत्तरदायित्व ६१३ जिस सत्यकी न्यूनता पाता है उसीको अपने समाजका अंग बनाने में अपनी संपूर्ण शक्ति लगा डालता है । सच्चे साहित्यिककी समाजसेवा कटुसत्यों को प्रकाश में लाने तथा वर्तमानमें देशको पतित बनानेवाले शक्तिशाली असत्य के खण्डनके संकट में पडनेसे बचकर अपनी पुस्तकों में केवल अर्धसत्य लिख देने मात्रसे पूरी नहीं होती । सच्चा साहित्यकार जिस सत्यको अपने समाजसे पलवाना चाहे उसे समाजसे पलवाना तथा उसे स्वयं भी पालना अपना कर्तव्य मानता है। मार्य चाणक्य इसी अर्थ में अर्थशास्त्र ग्रन्थ के साहित्यकार के रूपमें हमारे सामने उपस्थित हैं। मार्य चाणक्य प्रत्येक सच्चे ग्रन्थकारके भादर्श हैं। सन्होंने अपनी लेखनीसे चो कुछ लिखा है वह उन्होंने करके भी तो दिखाया है । भो हमारे देशके साहित्यकारो ! भार लोग आर्य चाणक्यकी साहित्यसेवाके साथ अपनी साहित्यसेवाकी तुलना तो करके देखिये कि माप लोगोंने अपनी साहित्यसेवामें उसे उपयोगी न्यावहारिक रूपमें उपस्थित करने तथा उसे वर्तमानमें उपयोगी बनानेवाला पहल अपूर्ण क्यों रख दिया ? हमारे कुछ इतिहास संशोधकोंने सवादो सदसवर्ष पूर्व के इतिहासके भानुपूर्वी समाचार न देनेवाले तत्कालीन लेखकों के संबन्धमें खेद प्रकट किया है । इन लोगोंने इस संबन्धमें जो खेद प्रकट किया है और उस समयके ऐतिहासिकोको सत्य समाचार न देने का दोषी ठहराया है वह सत्यका आविष्कार करना चाहनेवाले वर्तमान ऐतिहासिकों के लिये स्वाभाविक है । परन्तु सोचना तो यह है सवा दो या ढाई सहस्रवर्ष तो बहुत लम्बा काल है । पाठक अन्तर्दष्टि से देखें कि मापके देखते देखते वर्तमान भारतका इतिहास भी तो मिथ्या आवरणसे ढका जा रहा है और लोगों से छिपाया जा रहा है। सबसे तीस वर्ष पूर्व स्वतंत्रता आन्दोलनका इतिहास तथा सात वर्ष पूर्व राज्यलोलुप देशद्रोहियोंकी वे राज्यलिप्सु प्रवृत्तियाँ भी तो वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों से गुप्त रक्खी जा रही हैं जिन प्रवृत्तियोंका
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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