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________________ ६०० चाणक्यसूत्राणि जो बर्ताव शिष्टके साथ शिष्टाचार है दुष्टके साथ उसके विपरित पशिष्ट दीखनेवाला व्यवहार ही चाणक्यका शिष्टाचार है। उनके मतानुसार जिस शिष्टाचारको पानेका केवल शिष्टको अधिकार है उसे दुष्टको दे देना शिष्टके प्रति अशिष्ट व्यवहार है, सत्यका द्रोह है, अन्याय है तथा दुष्टका पक्षावल. मन करना रूपी दुष्टता भी है । न्याय दण्ड ही राजदण्ड है । सम्राट् चन्द्रगुप्त चन्द्रगुप्त का प्रारम्भिक राजनैतिक जीवन पश्चिमोत्तर भारतके निवासी लगभग २० वर्षीय युवा अश्वक नामक क्षत्रिय जातिके छोटेमे अधिपति के रूपमें प्रारंभ हुआ था। अन्तमें तो वह अपनी विचक्षण प्रतिभा, देशभक्ति. तथा अनन्य साधारण विक्रम के कारण न केवल भारतका सम्राट बन गया था प्रत्युत पृथिवीका असुरभार उत्तम उतारनेवाले विष्णुका अवतार तक कहा जाने लगा था । वाराहीमात्मयोनेस्तनुभवन विधामास्थितस्यानुरूपां यस्य प्राग्दन्तकोटिं प्रलयपरिगता शिश्रिये भूतधात्री। म्लेच्छरुद्धज्यमाना भुजयुगमधुना पीवरं राजमूर्तेः स श्रीमान् बन्धुभृत्यश्चिरभवतु महीं पार्थिवश्चन्द्रगुप्तः ॥ • जैसे प्रलयमें डूबी हुई पृथ्वीने कल्पके प्रारंभमें भूरक्षासमर्थ मादिबराह भगवानकी दंष्ट्रामें माश्रय लिया था, इसी प्रकार अब म्लेच्छोंसे उद्वे. ज्यमान भूमिने जिस चन्द्रगुप्त राजाके भुजाओंमें आश्रय लिया है वह चन्द्रगुप्तरूपधारी भादि विष्णु भारतभूमिकी रक्षा करे' । इसका अर्थ यह हुमा कि पृथिवीने म्लेच्छोंके आक्रमणसे बचने के लिये विष्णुके अवतार चन्द्रगुप्तक भुजामोंकी शरण ली थी। उसे अवतार माननेका कारण ही यह था कि म्लेच्छसंहारिणी शक्ति ही भारतमें वैष्णवी शक्ति मानी जाती रही है। त्यक्तस्वधर्माचरणा निघृणाः परपीडकाः। चण्डाश्च हिंसका नित्यं म्लेच्छास्ते ह्यविवेकिनः।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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