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________________ चाणक्यसूत्राणि सन्ध्योपासना करे यह राजाका दैनिक कर्तव्य है। रातमें गुप्तचरोंसे देशविदेशके समाचार सुनकर सायंकालीन स्नान, भोजन तथा स्वाध्याय समाप्त करके शयनगृहमें प्रवेश करे और चौथे या पांचवें याममें मधुर संगीतके साथ नींद छोडकर उपस्थित दिनके भावी कर्तव्योंका चिन्तन करे। सूर्यो प्रसे पहले ही गुप्तचरों को कर्तव्य सौंपकर पुरोहितों तथा आचार्योंसे भाशीर्वाद लेकर वैद्य, सूपकार तथा ज्योतिषी से स्वास्थ्यसंबन्धी आलोचना करे । इसके पश्चात् गोमाता, गोवत्स तथा हल जोतनेवाले बैलोंकी परिक्रमा तथा प्रणाम करके राजस भामें उपस्थित हो। राजा ध्यान रखें कि राजसभामें कभी भी प्रार्थीको राजद्वारपर अनुचित प्रतीक्षा न करनी पडे । राजदर्शनार्थीको दर्शनकी पूरी सुविधा न देनेसे जनताकी घृणाका पात्र बने राजा धर्मकार्यों, वैदिक अनुष्ठानों, गो-सेवा, तीर्थसेवा, शिशु, वृद्ध, रोगी, नारी तथा असहायआदिकी सेवाके लिये न्यक्तिगत रूपमें उद्यम करे । अत्यावश्यक कर्तव्योंको उसी क्षण करे ! इस लिये करे कि सहजसाध्य कर्म भी समय बीत जानेसे दुःसाध्य हो जाते हैं । कर्तव्य तत्परता ही राजाकी धर्मनिष्ठा है कर्तव्य ससम्पन्न करना ही उसका यज्ञ है । प्रजा समष्टि रखना उसकी पवित्रता है। प्रजाके सुखमें ही उसका सुख है। उसकी समृद्धि में ही उसकी समृद्धि है। राजा अपने व्यक्तिगत सखको तबतक सुख न माने जबतक वह प्रजाके लिये भी सखकर न हो । इसलिये राजा कर्तव्य परायणताको ही अपने राज्यैश्वर्यका मूल माने, इसके विपरीत कर्तव्य हीनताको राज्यका ध्वंस समझकर उससे बचे । राजाकी दिनचर्या राजाके ऐन्द्रियक भोगोंको अवसर देनेवाली न रहकर प्रजाके कल्याण साधनके उद्देश्यको पूरी करनेवाली होनी चाहिये । राजा भी हो और प्रजाकी रष्टिमें दुराचारी, अनैतिक, धृष्य, व्यक्तिगत सुखान्वेषी भी हो यह परस्पर व्याहत कल्पना है । यदि राजा सच्चे अर्थमें राजा है तो उसका प्रजापालनके अतिरिक्त व्यक्तिगत सुखान्वेषी बननेका तो प्रश्न ही नहीं उठता। प्रजासे पूजा पाने योग्य समस्त गुणोंसे युक्त होना ही राजाकी
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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