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________________ आर्य चाणक्यकी नीति यदि राजा अपने काम में तत्पर ( मुस्तैद ) हो तो अमात्य आदि सब भत्य अपना अपना काम ठीक ठीक करते हैं। यदि राजा मालस्थ करे और अपना राजधर्म न पाले तो अमाय लादि भुत्य भी अपना अपना कर्तव्य करने में प्रमाद करने लगते हैं और राजाका सलेवाकार्य कर डालते हैं। तब शत्रभों को राजाको अभिभून करने का अवसर मिल जाता है। इस. लिये राजा राजधर्मपालन के सम्मान में सदा ही सजग और रिबन रहे। राजा सजग तथा कटिबद्ध रहने के लिये मरने दिनको दिर्शक शासनसम्बन्धी कठोर अटल बंध में बांधकर को उधोगतपर कटिबद्धता ही राजाका व्रत है। व्यवहारनिर्णय हो जाता है। शासन शाके सम्बन्धमें शत्र मित्र सबपर समष्टि ही राजाका का। जासुखमें ही सजाका सुख है । प्रजाप कितने ही राजाका हित है। राजाका सपना कोई व्यक्तिगत हित नहीं है। प्रजाका प्रिय ही राजाको हि । इन कारणों से राजा नित्योद्योगी महकर अयंग्यवहार करे। उदार भी करत का एकमात्र उपाय है। अनुटोका नर्थक मूल है। लस्य के कारण उद्योग न करने पर राल तथा आगामी (भाव्य ) दोनों अयोजनोंका निश्चित विनाश हो जाता है। उद्योगमा ही फल मिलता है और अर्थ पनि प्र! होती है । उद्योग तीनों कालो हिलकारी है। इस प्रकार चाक्यो राजाका प्रजासे मला स्वार्थी अनित्य मिटाकर उसे समाजसेवकका लाघनीय स्थान दिया है। चाणक्य की साम्राज्य कल्पना स्वेच्छाचारी एकतन्त्र कहलाने वाले किसी बाकि या इलाका शालन नहीं है। उसकी साम्राज्य कल्पना नो सम्पूर्ण मनु समाजका स्वाधीन शासन है। चाणक्य के मन्तानुसार राजामें विचारशील गृहस्थ समान व्यवस्था सम्बन्धी समस्त गुण होने चाहिये । उसे राष्ट्रव्यवस्था के नामपर एक कांडी भी व्यर्थ नष्ट न होने देना चाहिये । उसे अपनी अाणित प्रजाको अपने पारिवारिक सदस्यों की भांति बढी चिन्ता तथा सतर्कता से कम एके शासन में रखना चाहिये । उसे प्रजाको सत्यके शासन में रखने के लिये स्वयं धर्मके मार्गपर चलना चाहिये और अपनी प्रजाके सामने अपने सत्याचरणोंका
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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