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________________ आर्य चाणक्यकी नीति वैज्ञानिक आविष्कारोंकी सुविधाएं नहीं थीं केवल चौबीस वर्षमें पूर्ण रूपसे सफल हुभा था। उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्यमें मादर्श राजचरित्रका निर्माण करके दिखाया और उसीके मार्गदर्शन के लिये कौटलीय अर्थशास्त्रकी रचना की । उन्होंने आदर्श राष्ट्र निर्माणकी दृष्टि से भारतके अपने अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिये आपस में लडते, झगडते छोटे-छोटे राज्यों को एक विशाल शक्तिशाली राष्ट्र के रूपमें बदला और उसकी शासन-व्यवस्थाको सुचारुरूपसे चलानेके लिये अर्थशास्त्र के रूपमें एक निर्दोष विधान बनाकर प्रस्तुत किया। भारतके प्राचीन संस्कृत साहित्य में कोटलीय अर्थशास्त्रका महत्वपूर्ण स्थान है। उस समय उनका यह महान् ग्रन्थ भारतके प्रत्येक प्रान्तकी पाठविधियों में स्वीकृत हो चुका था। ___ इस ग्रन्थ के सम्बन्धमें जर्मन विद्वान् बेलोरेनने लिखा है- 'अर्थशास्त्र एक ऐसे प्रतिभावान मस्तिष्ककी उपज है जो न कभी लक्ष्यभ्रष्ट हो सकता है और न विशृंखल ही और यह ग्रन्थ राजनैतिक विचारधाराकी पराकाष्ठाको पहुंचा दिया गया है । ' इस ग्रन्थमें राष्ट्र के स्वदेशी तथा विदेशी नागरिक सामरिक, व्यावसायिक, व्यावहारिक, अर्थनैतिक, राजस्विक तथा न्याय आदि राष्ट्र-निर्माण तथा समाज संगठनसे सम्बन्ध रखनेवाले समस्त सावश्यक विषयोंका पूर्ण मार्गदर्शन कराया गया है । इसमें इन सब विषयोंपर सुप. रिष्कृत ढंगसे विचार किया गया है । चाणक्यने इस ग्रन्थमें स्थान स्थानपर जिस प्रकार मनु, बृहस्पति, औश. नश, भारद्वाज, विशालाक्ष, पराशर, पिशुन, कोणपदन्त, वातव्याधि, बाहुदन्तीपुत्र आदि आचार्यों के मतोंकी अनेक स्थानोंपर तुलना की है । उनकी तुलनासे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन भारतमें समाज तथा राष्ट्र संबंधी विषयोंपर भले प्रकार विचार भी होता था और इन विषयोंके अध्ययनकी एक जीवित परम्परा भी थी। उन्होंने पूर्वाचार्योंके मतोंका उल्लेख करते हुए । नेति कौटल्यः '' नेति चाणक्य: ' मादि शब्दों में जिप प्रौढतासे अपने मतकी स्थापना की है उससे इनका भात्मविश्वास पूर्ण निःसंदिग्धता
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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