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________________ आय चाणक्यका इतिवृत्त ५७७ चाणक परे देखा कि भारत सावितको जन्मभमि है। भारत के एक प्रान्तसे दूसरे बात तक, एक छोरले दूसरे छोर तक, बसा हुआ समस्त मनुष्य. समाज माध्यामिक स्वतंत्रताका प्यामा है। भारतका प्रत्येक मनुष्य अपनी कल्पनामिक ल र क पहुंज! चला सारतका पारि. वारि संगठन तालिम ( 41 की हार करके चलता है । भारतका श्रिम मनुष्य हे काम ताकी विजया फैराना चाहता है । म सबकुछ होने पर भी मारनका ध्याहिमकता भ्रान्तिकी जा रही है। यह देम्बर चाणक्यक सनने यसकतन्य. त्रुद्धि जागी कि हालात को शिशिबानाकी है और कुछ नाप किया था कि दचार का नाम सयास्मिकता या ज्ञान का कि सुभाव का जो वयन्त्र है वही तो अध्यारम ज्ञान है। भारत श्राध्यात्मिकताको जन्मभूमि होला हुला सीमावारिक ज्ञानसे दूर हटता जा रहा है जबकि अध्यकताका ८५ वदारिक जानसे अलग कोई भी मूल्य नही है। भारत कालिमम मानव सामाजिक कर्तव्यों. पर साधारित न कर मानव जातिव्यहीनता की ओर भगा ले जा रहा है । भारतम वर्णाश्रम धर्म के नाम पर कर्मण्य का बोलबाला होता चला जा रहा है। समाज इतना वेिचारशील हो गया है कि उसने समाजके प्रति अपना कोई उत्तरदाधिध न माननेवाली नष्कम्य नामको स्थितिको श्रेष्टता दे डाली है, एक काल्पनि आध्यात्मिकता बना ली गई है और उसीको अपना ध्येय बना लिया है। कर्मसंन्याम जामको स्थितिने भारतीय मनुष्यों को कर्तव्यहीन झुंडों के रूप में परिवर्तित कर डाला है। जिस गाईस्थ्य धर्मका लक्ष्य समाजका सामूहिक कल्याण करना था, भ्रान्त माध्या. स्मिकताके प्रचारने उपका बह लक्ष्य न रहने देकर प्रत्येक गृहस्थको कर्मसंन्यासका प्रतीक्षक बना डाला है। ३७ चाणक्य.)
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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