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________________ ५७४ चाणक्यसूत्राणि 'समानशीलव्यसनेषु सख्यम् ' के अनुसार उन दिनों ये दोनों ही महानुभाव राष्ट्रचिन्तासे व्याकुल थे। दोनों की व्याकुलतोंने दोनोंका स्वाभा. विक रूपमें मिलन करा दिया था। फिर भी इन दोनों में प्रेरक चाणक्य ही थे। सौभाग्यसे उस समय भारत में अबके समान मनबलका अभाव नहीं हो गया था। न्यूनता यह थी कि भारत का तत्कालीन मनोबल प्रकाशमें मानेका अवसर न मिलनेसे सपकाशित रह रहा था । भारतके मनोबलको प्रकाश में लाना अर्थात् भारतमें संकीर्ण प्रान्तीयता मिटाना और उसके स्थान पर अखिल भारतायताको प्राधिकार देना चाणक्यकी ब्राह्मशक्ति तथा चन्द्र गुप्तकी शासनिक के सम्मिलित उद्यम का लक्ष्य बन गया था। अग्रतश्चतुरा वेदाः पृष्ठतः सशरं धनुः । इदं ब्राह्ममिदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ॥ जैसे भार्गव ( परशुराम ) ब्राह्मण तथा क्षात्र शक्तिके मिश्रण थे वैसे ही इन दोनों का मिलन ब्राह्मण क्षात्रशक्तियों का सम्मिलन होगया था। एक सोचकर राजनैतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करता था दूसरा उसे न्यावहारिक रूप देने में अपनी पाहुति दे देता था। उन दिनों भारतकी धनसंपत्ति बाह्य शत्रुओंको प्रलोभित कर रही थी। देश इतना संपन्न था कि नन्दराज महापद्म अर्थात् महापद्म धनराशिका अधीश कहाता था। जिस देश के राजाओंपर इतना धन था उस देशकी साम्पत्तिक स्थितिका सहज ही अनुमान किया जा सकता है । चाणक्यने देखा भारतकी भ्रान्त आध्यात्मिकता या भारतमें फैलनेवाले अव्यावहारिक धर्माने ही उसे मनाध्यात्मिक तथा अधार्मिक बना डाला है। भारत की आध्यात्मिकता और उसके धर्मने समाजका मुख राष्ट्ररक्षा नामक कर्तव्यसे मोड लिया है और भारत व्यक्तिवाद में सीमित होकर अनाध्यात्मिक तथा धार्मिक बन गया है। उसने देखा भारतकी भ्रान्त माध्यात्मिकताने भारतमें सर्वत्र भन्यायका विरोध करने से बचने की नीति फैला डाली है और यों भारतकी माध्यात्मिकता ही उसके तेजस्वी जीवनको घातक शत्रु बन गई है।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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