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________________ आर्य चाणक्यका इतिवृत्त शाली अप्रतिग्राही ब्राह्मण थे । ये महानुभाव चन्द्रगुप्तको भारतका सम्राट बनानेतक उसके प्रधान अमात्य रहे । उसके पश्चात् यह पद भूतपूर्व मगध देशके मंत्री अमात्य राक्षसको सौंप दिया और स्वयं सम्राज्य के शासन के निर्देशक बनकर रहते रहे । इन्होंने अर्थशास्त्र के अन्तमें अपना जन्मनाम विष्णुगुप्त उद्घोषित किया है। दृष्टा विप्रतिपत्तिं बहुधा शास्त्रेषु भाष्यकाराणाम् । स्वयमेव विष्णुगुप्तश्चकार सूत्रं च भाष्यं च ॥ जब एक ग्रन्थपर भनेक भाष्यकार भाष्य करते हैं तब कोई कुछ कहता है और कोई कुछ । इस प्रकार ग्रन्थकारका मुख्य तात्पर्य भाष्यकारों की लेखिनीमें सुरक्षित नहीं रह पाता यह देखकर विष्णुगानने अपने सूत्रों को भाष्यकारोंकी कृपापर न छोड़कर अपने साए ही उनका भाष्य भी किया। कौटल्यश्चणकात्मजः-इस हेमचन्द्र कोशमें उन्हें चणकात्मज बताया है। उसके अनुसार ये चमके पुत्र ( वंशज होनेसे चाणक्यनाम से प्रषिद्ध हुए। कौटल्येन नरेन्द्रार्थ शासनस्य विधिः कतः। कौटल्य ने सम्राट चन्द्रगुप्त के लिये अर्थशास्त्र के रूप में शासन विधान बनाया । उन्होंने इस स्वरचित ग्रन्थ में अपने कोटलग नाम का भी जा रहा सगौरव उल्लेख किया है। कूटो घटः तं धान्यपूर्ण लान्ति संगृह्णन्ति इति कुटलाः कुम्भीधान्याः त्यागपरा ब्राह्मणश्रेष्ठाः। तेषां गोत्रापत्यं कौटल्यो विष्णुगुप्तो नाम । कूट घटका नाम है। जो लोग एक घटसे अधिक भन्न संग्रह नहीं करते थे उन कुम्भीधान्य नामक नत्यन्त त्यागी श्रेष्ठ ब्राह्मणों का गोत्रापत्य कौटल्य कहाता है । कोटल्यका मुख्य नाम विष्णुगप्त है ___ आर्य चाणक्य अपने को कुलीनता तथा त्यागवृत्ति के सूचक चाणक्य तथा कौटल्य इन दोनों उपनामोंसे अभिहित करने में गौरव अनुभव करते थे ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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