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________________ प्रसंगोचित आलोचना "> इतिहासकारोंने सिकन्दर के मुखसे यह अन्तिम पश्चात्ताप निकलवाया है कि " भारतवासियोंने मुझे पग-पगपर त्रास पहुँचाया, मेरी सेनायेंनष्ट की, क्रुद्ध होकर असह्य यंत्रणायें दीं और मेरे शरीरपर घातक प्रहार किये । भारतपर आक्रमण मेरे जीवनकी भयंकर भूल थी । सिकन्दरपर चन्द्रगुलकी इस असामान्य विजयने न केवल समस्त पश्चिमोत्तर भारतका किन्तु मध्य एशिया और पूर्वी परशिया तककी समस्त जातियोंका पराक्रमी नायक बना दिया था । पाठक देखें इस प्रकार चाणक्य चन्द्रगुप्त के संयुक्त राजनैतिक कौशल से अन्तमें मगध में जो विशाल साम्राज्य बनकर प्रस्तुत हुआ उसके निर्माणका प्रारंभ पश्चिमोत्तर भारतसे ही हुआ था । और वह उसकी सिकन्दर विरोधी प्रवृत्तियोंसे हुआ । वास्तव में देखा जाय तो इस साम्रा ज्यका बीज तो चाणक्यका हृदय ही था। चन्द्रगुप्त चाणक्यकी मंत्रशक्ति में सिकन्दर के आक्रमणके दिनोंमें ही पश्चिमोत्तर भारत, ईरान, अफगानिस्तान आदिका एक प्रमुख व्यक्ति बन चुका था । उसने भारतसे सिकन्दरको खडते ही अवशिष्ट यूनानी अधिकारियोंको भी नष्ट कर डाला । सिकन्दर के भारतके लौटते ही सारा पश्चिमोत्तर प्रदेश यदच्छासे चन्द्रगुप्तके अधिकार में ५५९ अा गया था । चाणक्यने सिकन्दरको तो मिटा डाला । परन्तु उसके सम्मुख भारतको संभावित विदेशी आक्रमणोंसे सुरक्षित रखने की समस्याका पूर्ण समाधान करना अब भी शेष था। क्योंकि उस समय समग्र भारतका आत्मा और भाग्य दोनों परहितनिरत चाणक्य में आकर एकीभूत हो गये थे इसलिये वह दिनरात भारतकी सुरक्षाकी चिन्तामें डूबा रहता था । भारतकी राजनैतिक परिस्थिति चाणक्य से निरन्तर यह कह रही थी कि जबतक मगधके सिंहासनपर चन्द्रगुप्त जैसे चरित्रवान् वीर व्यक्तिको अभिषिक्त नहीं कर दिया जायगा तबतक भारतको एक शक्तिशाली साम्राज्य या एक विराट् राष्ट्रपरिवारका रूप देने की तुम्हारी कल्पना अधूरी ही पड़ी रह जायगी । जब चाणक्य चन्द्रगुप्तको ईरानमें सिकन्दरकी भारताभिमुख गति रोकने के लिये अश्वक सेनाओं के अधिपति के रूप में भेजा था उसी समय उसने स्वयं
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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