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________________ प्रसंगोचित आलोचना अधिकार पाये हुए थे। उन्होंने अपनी अलौकिक शक्तिके दीप्त वज्रसे पर्वत. तुल्य विशाल नन्दवंशको मिटा डाला था, उस अकेलेने अपनी बुद्धि, प्रतिभा तथा देव सेनापतियों जैसो वीरतासे चन्द्रगुप्तको लोकप्रिय राजा तथा पृथिवी पति बना दिया था। जिसने अर्थशास्त्र रूपी समुद्रका मन्थन करके लोगोंको राष्ट्रनिर्माणको कलासे परिचित कराने के लिये राजनीति नामक अमृतका उद्धार किया था । " चाणक्य संबन्धी इस स्तुति वाक्यमें जिस नन्दवंशके ध्वंसका उल्लेख है, सिकन्दरके भारत-माक्रमणका उस नन्दवंशके साथ विशेष संबन्ध है। सिकन्दरको मासुरी-समर-यात्राका उद्देश्य ईरान के मार्गसे भारतपर माक्रमण करना और भारतका सम्राट बनकर विश्वसम्राट बनना था। देवकी अचिन्त्य इच्छासे उस समय समस्त भारत के भाग्यका प्रतिनिधित्व करनेकी भावना निष्किञ्चन परन्तु बुद्धि के धनी विप्र चाणक्य के मनमें जाग उठी। विप्र चाणक्यकी अनागतविधात्री बुद्धि ने भश्वक नामक क्षत्रिय जातिके अधिपति चन्द्रगुप्तको जो चाणक्यका आज्ञाकारी ही भारमसमर्पणी राजनैतिक अन्तेवामी बन चुका था। सिकन्दरकी भारताभिमुख गतिको भारतमें घुसने से भी पहले रोक देने के लिये ईरानकी महायताके नामसे ईरान भेज दिया था । ईरान निर्बल तथा हतोत्साह और वहां मनुष्यरध तथा स्वाभिमानके नामपर करनेवाली शक्तियों का सर्वथा अभाव था। वह सिकन्दरके दण्डे के सामने सिर झुकानेको प्रस्तुत बैठा था। चन्द्रगलने अपनी परम साहसी अश्वक सेनाओं के द्वारा सिकन्दरके मार्गमें पग-पगपर विघ्न उपस्थित किये परन्तु उसे रोका नहीं जा सका। उस समय अवसरवादी चाणक्यने, सिकन्दरको विश्वास में लाकर उसके सहायकों तथा उसकी सेनाओं में विद्रोह पैदा करके उसे पछाडने की दृष्टिसे चन्द्रगुप्तसे सिकन्दर के प्रति कपट भात्मसमर्पण करा दिया। सिकन्दरकी यही नीति थी कि स्थानिक विरोधी राजामों के बारमसमर्पण कर देनेपर वह उन्हींको वहांका आधिपत्य सौंपकर उन्हें अपना लेता
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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