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________________ ५४८ चाणक्यसूत्राणि मात्र प्रतिभाको राजनैतिक तथा सामाजिक दोनों कर्मक्षेत्रों में उतरने के लिये विवश कर डाला था। उस समयकी देशकी आभ्यन्तर बाह्य दोनों परिस्थितियोंने चाणक्य जैसे विचारशीलकी सर्वतोमुखी प्रतिभाको देशके संकटमें काम आने तथा देश में स्वार्थ के स्थानपर मनुष्यताके नामपर काम करने वाली शक्तियोंको झकझोर कर, जगा जगाकर व्यावहारिक क्षेत्रमें खडा करनेका ऐसा इतना तीव्र निमंत्रण दिया था जिसे चाणक्य जैसा संवेदना शील व्यक्ति अस्वीकार नहीं कर सका। देशकी उस समय की जिस परि. स्थितिने चाणक्यकी नीतिको व्यवहार भूमिमें मानेका अवसर दिया था उसका पूरा चित्रण करने के लिये पश्चिमके प्रसिद्ध माततायी सिकन्दरके चरित्रकी आलोचना करना प्रासंगिक तथा अत्यावश्यक है। पाश्चात्य ऐतिहासिकों में से कुछ तो सिकन्दरको महान् विश्वविजेता तथा कुछ उसे विश्वविख्यात माततायीके नामसे स्मरण करते हैं । लगभग सवा दो सहस्र वर्ष पूर्व यूनान में सिकन्दरका अभ्युदय हुआ था । वह रणोन्मत्त था। उसे केवल बीस वर्षकी अवस्था में अपने माततायी पिताका केवल राज. सिंहासन ही नहीं मिल गया था किन्तु असे साथ ही अपने पिताकी परराज्य-लोलुप मनोवृत्ति उत्तराधिकार के रूपमें मिली थी। उस समय यूना. नमें सामरिक एकतन्त्र शासन (मिलिटरी मोनी) का प्रादुर्भाव हो चुका था। सैन्यबलसे बलवान् होकर जनतापर मनमाना अत्याचार करना, लोगोंको डरा-धमकाकर उनपर प्रभुत्व जमाये रखना तथा सैनिकों को लूटके मालका लोभ देकर राज्य विस्तार करना पश्चिमके अत्याचारी राजाओंकी राजनीति बन गई थी। सिकन्दरका पिता फिलिप इसी पशुशक्तिके बलसे यूनानका अधिपति बना था। उसे देशके साथ विश्वासघात करने के कारण एक गुप्त हत्यारेके हाथों देशद्रोहीकी मौत मर जाना पड़ा था । उस समय यूनानमें सशस्त्र राजकीय अत्याचारोंका बोलबाला हो रहा था। उस समयकी यूनानी राज्य. व्यवस्था लूटका ठेका ( दूजारा) मात्र रह गई थी। उस समय यूनानी
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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