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________________ ५४० चाणक्यसूत्राणि मत्याज्य कर्तव्य है । अब हमें धार्मिकों की इस कर्तव्यनिष्ठामेसे क्षमाका संभव मर्थ ढूंढना है। बात यह है मनुष्य, शत्रु या अपराधीके आक्रमणका उचित प्रतिकार तब ही कर सकता है जब वह उस माक्रमणको देखकर उत्तेजित न हो गया हो। यह तो मानना ही पडेगा कि मनुष्य स्थिर और शान्त बुद्धि रहकर शत्रुके माक्रमणका जितना अच्छा प्रतिकार कर सकता है उतना अशान्त होकर नहीं कर सकता । उत्तेजना या भाकाहटके अवसरपर शत्रु. विजयरूपी लक्ष्य की सेवामें शान्त हृदयसे लगे रहना ही क्षमा शब्दका माननीय अर्थ हो सकता है। इस दृष्टिसे अपराधीको दण्ड देने योग्य बने रहना, निरपराधको अदण्डित रखना अर्थात् उत्तेजनाधीन होकर निरपराध. पर हाथ न छोड वैठना ही क्षमा है। उत्तेजनाजन्य भ्रान्तिसे अपराधी तक दण्ड न पहुँचा सकना अक्षमा है । अक्षमा प्रतिकार मूढताका ही नामान्तर है। यदि अपराधीको दण्ड देने में प्रमाद हो जाता है तो वह समाजके शत्रुओंको प्रबल बनाना हो जाता है । मनुष्य के वास्तविक शत्रु उपहीके भीतर रहनेवाले कामक्रोधादि रिपु हैं। कामक्रोधादि रिपुओंके वशमें आकर जिसके साथ जो कोई व्यवहार किया जाता है वह वास्तव में अक्षमा, उत्तेजना, प्रमाद या मूढता ही होता है। अक्षमाका परिणाम यही होता है कि बाह्य शत्र अदण्डित रहकर सब समय शत्रुताचरण करने के लिये स्वतंत्र हो जाते हैं। समाजके शत्रु तब उत्पन्न होते, पलते, प्रोत्साहित होते और वृद्धि पाते हैं जन समाज उन्हें दण्ड देने में प्रमाद करता है । समाजमें सची क्षमाशीलता न रहनेसे निरपराध तो दण्ड पाने लगते और अपराधी अदण्डित रहने लगते हैं । अपराधियोंके अदण्डित रह जानेसे समाजके शत्रु बढ जाते हैं। मनुष्यके भाभ्यन्तरिक क्रोधलोभादि शत्रु मनुष्य के मन में समाजद्रोह करनेकी भावना उत्पन्न कर देते हैं । समाजद्रोही मनुष्य अपने स्वार्थको समाजके सार्वजनिक कल्याणका घातक बना लेता है। इसका परिणाम यह
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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