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________________ देहासक्ति मानवका अज्ञान इये मनुष्य दूसरोंसे छीना-झपटी करके भोजन, वस्त्र तथा विलास - सामग्री क्यों न एकत्रित कर के १ यदि दैहिक सुख-साधन-संग्रहको व्यक्तिगत या राष्ट्रीय जीवनका लक्ष्य बन जाने दिया जायगा, तो समाजमें छीना-झपटी आदि अवैध उपायोंसे भोजन, वस्त्र तथा विकास - सामग्री संग्रह करने की प्रवृत्ति उच्छृंखल होकर सामाजिक जीवनकी नींवतक हिला डालेगी | मनुष्यसमाजको मनुष्यतारूपी जीवनके आदर्शको न भूलने देना विचारशील समाजसेवकों का मुख्य कर्तव्य है । परन्तु इस मूढताका क्या किया जाय कि मनुष्य समाजके विचारशील गिने जानेवाले लोग भी व्यक्तित्व के अंधानुगामी बनकर साम्यवाद समाजवाद आदि पाश्चात्योच्छिष्ट नार्मोसे जनता में दैहिक - सुख-स्वच्छन्दता के सार्वजनिक समानाधिकार तथा भौतिक धनसंपत्के समान विभाजनकी कल्पनाका प्रचार करनेकी भ्रान्ति करते हैं । इन लोगों के इन विचारहीन प्रचारोंने दैहिक सुखोंको ही मानव-जीवनका लक्ष्य मनवा डाला है | इन भद्र कोगोंके प्रचारका दुष्परिणाम यह हुआ है कि धनसंपतके उपार्जनमें सत्यानुमोदित सदुपायका जो महत्वपूर्ण स्थान चला आ रहा था, वह उससे छिन गया है और आजके मानवको जिस किसी प्रकार धनोपार्जन करनेकी छूट दे दी गई है । ५३३ समाजके विचारशील गिने जानेवाले इन उज्ज्वलवेषी भव लोगोंने इस बातपर विचार ही नहीं किया कि भौतिक सुख भोगों में सन्तोष नामकी ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जिसके लिये प्रत्येक मनुष्य मारा मारा फिरता है । मनुष्यको ऊपर ही ऊपरसे देखने में मीठी लगनेवाली वासनाभिकी इस भयंकरताको पहचान जाना चाहिये कि उसमें समग्र जगत् के भोग्य पदार्थोंकी आहुति दे देनेपर भी मनुष्यकी भोगामि नहीं बुझती या भोगाभिलाषाका पेट नहीं भरता । मोगाद्मिके पीछे अपने राष्ट्रको भटकाना या भटकने देना भ्रान्त आदर्श है । लोगों के सामने इस भ्रान्त आदर्शको रख देनेका परिणाम यही हुआ है कि देहरक्षा के लिये सत्यानुमोदित उपार्जन आवश्यक नहीं रह गया है जो रहना चाहिये था और जिससे समाज में शान्तिका सुनिश्चित 1
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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