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________________ चाणक्यसूत्राणि तो मनुष्यको केवल जन्म ही देते हैं परन्तु कर्तव्यपरायण राजा लोग तो अपनी प्रजाको शिक्षा, रक्षा, भरण-पोषणोंसे अपने औरस पुत्रोंके समान पालकर प्रजाके सच्चे मातापिता बन जाते हैं । जबतक राजाप्रजामें परस्पर सन्तान तथा मातापिताकासा मधुर संबन्ध स्थापित नहीं होता तबतक प्रजाका सुखी होना और राज्यका सुरक्षित रहना दोनों ही असंभव है। यदि राजाने प्रजाका माताकासा प्रेम प्राप्त नहीं किया, यदि वह माताकासा विश्वासभाजन नहीं बन सका तो उसके राज्यको एक प्रकारका लूटका ठेका ही जानना चाहिये। पाठान्तर- न्यायवर्तिनं राजानं मातरमिव मन्यन्त प्रजाः । (न्यायी राजाका लाभ ) तादृशः स राजा इह सुखं ततः स्वर्गमाप्नोति ॥५६०॥ न्याययुक्त, स्वधर्मरत, प्रजा-पालन-तत्पर, लोकप्रिय राजा वर्तमान तथा भविष्यत् दोनों कालोंमें सुख पाता तथा प्रजाके शुभाशीर्वादोंका पात्र बना रह कर आत्मप्रसाद रूपी स्वर्ग पाता है। स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धि लभते नरः । मनुष्य अपने अपने कर्तव्यपालनमें दीक्षित रहकर ही सिद्धि पाते हैं । पाठान्तर-- स्वधर्मानुष्ठानादेव सुखमवाप्यते स्वर्गमवाप्नोति । राजाको राजधर्म पालनसे सुख और स्वर्ग प्राप्त हो जाता है। (राजाका कर्तव्य । ( अधिक सूत्र ) चोरांश्च कण्टकांश्च सततं विनाशयेत् । राजा चोरों तथा राष्ट्रकण्टकोंको सदा नष्ट करता रहे । विवरण- राजा, चोरों तथा दूसरोंका अनिष्ट करनेवाले उन सब लोगों को जो प्रजाको गुप्त उपायोंसे लूटलूटकर कानूनकी पकडमें न आकर
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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