SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 536
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कूटसाक्षीकी हानि देखें | वर्तमान न्यायालयों ( प्रचलित अदालतों ) में अनैतिकताका वाताचरण है यह सर्वविश्रुत तथा सर्वसम्मत बात है । जो लोग वर्तमान न्यायालयों ( या अदालतों ) के संपर्क में जाते हैं, उन सबका अपने स्वाभिमान तथा अपनी स्वाभाविक सत्यनिष्ठा पर पग-पगपर चोट आनेका भस्यन्त कटु अनुभव है । यों तो सत्यनिष्ठ के लिये सच्ची साक्षी देना सुखकर कर्तव्य है, परन्तु जिन न्यायालयों ( अदालतों ) में सत्यका अपमान करनेका ही सुदृढ प्रबन्ध हो, जहाँ स्वयं अदालत सत्यको अपमानित करके मिथ्याको महत्व देनेके लिए तुली हुई दो और न्यायके सिरपर अपने स्वेच्छाचारको बैठा रखा हो तथा न्यायार्थीके मानवीय उचित अधिकारको पददलित करके सब प्रकारका प्रमाद, आलस्य और दुराग्रह करनेके लिए स्वतंत्र हो जहां पुलिस नाना प्रकार के अनुचित उपायोंसे मिथ्या प्रमाण सजाकर अघदिन अभियोग प्रस्तुत करने में लगी रहती हो, वहाँ पुलिसके तथा घमंडी अदालतके संपर्क में आना सत्पुरुषों के सिद्धांत के विरुद्ध हुए बिना नहीं रहता । ५०९ सत्य साक्षी देनेका आग्रह रखनेवाले परपुरुषको जबतक न्यायालयकी पवित्रता, पुलिसकी कर्तव्यनिष्ठा तथा न्यायालयकी कार्यवाहियों में अपनी सम्मान - रक्षाका पूर्ण सन्तोष न मिले, तबतक सत्य साक्षी देनेकी अभिलाषा रखनेवालोंको सत्य ( सचाई ) की विजयके सम्बन्ध में निश्चिन्तता कभी भी नहीं हो सकती । इसलिये मनुष्यको जानना चाहिये कि सत्यको निश्चित विजय दिलानेवाला न्यायालय ही सच्चा न्यायालय है । जो लोग ऐसे लब्धप्रतिष्ठ न्यायालयोंमें सत्य साक्षी देने से बचें उनका बचना मिथ्या पक्षका समर्थन रूपी दंडनीय अपराध है। सच्चे न्यायालयों में ही सत्य कहा जाय इसी में सच्ची साक्षीकी सार्थकता है । पाठान्तर - न च कूटसाक्षी स्यात् । ( कटसाक्षी की हानि ) कूटसाक्षिणो नरके पतन्ति ॥ ५५९ ॥ मिथ्याको सत्य बना डालनेवाली साक्षी देनेवाले अज्ञानी
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy