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________________ चाणक्यसूत्राणि एकान्तमें विचारसे निर्णीत गुप्त बातको बाहर फैला देता है। इन सबसे मन्त्रको रक्षा करनी चाहिये। इस विषयपर भारद्वाज, पाराशर, विशालाक्ष, पिशुन, बृहस्पति, उशना, मनु, वातव्यधि, कौटिल्य तथा बाहुदन्तीपुत्रोंके मन्तव्य, कौटल्य अर्थशास्त्र तथा मोशनस सूत्रोंमें उल्लिखित हैं। पाठान्तर-मन्त्रनिःस्रावः सर्व नाशयति । हानि करनेवालों को गुप्तरूपसे विचारित मन्त्रणाका पता चल जाना चिन्तित समस्त कार्यको नष्ट कर डालता है। प्रमादाद द्विषतां वशमुपयास्यति ॥२५॥ यदि राजा या राज्याधिकारी मन्त्ररक्षामें थोडासा भी प्रमाद करेंगे अर्थात् मन्त्र सुननेके अनधिकारी व्यक्तियोंसे कर्तव्यकी गोपनीयताको सुरक्षित न रख सकेंगे तो वे अपना रहस्य शत्रुओंको देकर उनके वशमें चले जायेंगे। सर्वद्वारेभ्यो मन्त्रो रक्षितव्यः ॥ २६॥ मन्त्र फूट निकलने के समस्त द्वारोंको रोक कर उसकी रक्षा करनी चाहिये। विवरण- मन्त्र शत्रु या उसके किसी हितैषीके पास तक नहीं जाना चाहिये । मन्त्रको रक्षा उसे किसीके भी पास न जाने देने की पूरी साव. धानीसे ही हो सकती है। शत्रु, पिशन, लोभी, छिद्रान्वेषी लोग मन्त्रभेद किया करते हैं । अथवा-मन्त्रलेख धादि साधनोंकी भरक्षासे भी मन्त्रभेद होता है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रका भेद लेने के लिये नानाविध कुटिल उपायोका प्रयोग करता है । उन सब कुटिल प्रयोगोंसे अपने मन्त्रको रक्षा करना अत्यन्त गम्भीर कर्तव्य है । जैसे कोषागारका प्रहरी भुशुण्डी हाथमें लेकर टहल टहल कर जागरूक रहकर उसकी रक्षा करता रहता है, उसी प्रकार राष्ट्रनिर्माता मन्त्रोंपर भी कठोर पहरा रहना चाहिये । चाणक्यने कहा
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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