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________________ सहनशीलताकी प्रशंसा ४९३ क्षमा समझना बडी भूल है। शक्ति होनेपर भी उत्तेजित न होकर विवेकपूर्वक कर्तव्य करते जाना ही प्रशंसनीय स्थिति है। क्रोधवेगपर वशीकार रखना ही क्षमा है। अशक्तकी सहनशीलता तो उसकी दुर्बलता है। अशक्तकी सहनशीलता तो अगतिककी गति है। बुरीसे बुरी स्थिति में भी उत्तेजित न होने तथा प्रतिकार न छोड बैठने की क्षमावाली नीतिका स्पष्टीकरण भारवि कविके पाण्डवाग्रज युधिष्ठिर के मुखसे कहाय निम्न श्लोकों में देखा जा सकता है। क्षमा धर्मका पालन करते हुए शत्रुका नाश करना ही इन पद्यों में क्षमा शब्दका अभिप्रेत अर्थ है। शिवमापायिकं गरीयसी फलनिष्पत्तिमदूषितायतीम् । विगणय्य नयन्ति पौरुषं विजितक्रोधरया जिगीषवः ।। विजोगीषु लोग अपने क्रोधावेशपर अपना पूरा नियंत्रण रखकर महत्व. युक्त तथा सुन्दर भविष्यवाली फलसिद्धि को अपना लक्ष्य बना लेते हैं और अपने पुरुषार्थको फलसाधक उपार्योसे मिला देने के लिये शान्त रहते हैं । वे फलसिद्धि में विघ्न डालनेवाले कोधावेशमें नहीं आते । उपकारकमायतभृशं प्रसवः कर्मफलम्य भूरिणः । अनपायि निबर्हणं द्विषां न तितिक्षासममस्ति साधनम् ॥ स्थिर फल देने वाला होनेसे भविष्य को अत्यन्त सुधारनेवाला, विपुल कर्म. फल देनेवाला, स्वयं नष्ट न होकर शत्रुओं को नष्ट कर डालनेवाला, तितिक्षा (अर्थात् दुष्ट क्रोध के वशमें न आकर अपने कर्तव्य-पथपर दृष्टि रखे रहने ) से दूसरा कोई साधन नहीं है। पाठक दखे यहाँ तितिक्षा शब्द प्रतिकारका वाचक नहीं है। तितिक्षा शब्द क्रोधके कारण उत्पन्न होने वाले कार्यके असामर्थ्य के अवरोधक गुणका वाचक है । तितिक्षा तथा क्षमा एकार्थक हैं। अपने यमुदतुमिच्छता तिमिरं रोपमयं धिया पुरः । अविभिद्य निशाकृतं तमः प्रभया नांशुमताप्युदीयते ॥ उन्नतिकामी लोग सबसे पहले अपनी विवेक बुद्धि से रोष, भावेश या अक्षमासे होनेवाले अज्ञानान्धकारको हटायें । संसारमें देखा जाता है कि
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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