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________________ संसार मेषमनोवृत्ति है सकने वालोंका मार्गदर्शक होता है। शिष्टाचार जीवित शास है । यह समाजरूपी जीवित ग्रन्थके भाचरणरूपी पृष्ठोंपर लिपिबद्ध होकर ममिट शास्त्र बना रहता है। (राजाकी दूरदर्शिताका साधन ) दूरस्थमपि चारचक्षुः पश्यति राजा॥ ४७२॥ राजा अपने दूतोंकी आंखोसे दूर दूर देश-विदेशकी बातें समीपस्थके समान जान लेता है। विवरण- गौवें गन्धसे, मनुष्य मांखसे, विद्वान् बुद्धिसे और राजा दूतोंसे देखा करते हैं। गावो गन्धन पश्यन्ति वेदैः पश्यन्ति ब्राह्मणः । चारैः पश्यन्ति राजानश्चक्षुामितरे जनाः ॥ गौवें गन्धसे खाद्याखाद्य पहचानती, ब्राह्मण वेदसे कर्तव्य पहचानते, राजा चारों ( गुप्तचरों, दूतों) से राष्ट्र परराष्ट्र की वस्तुस्थिति को समझते तथा साधारण लोग मांखोंसे अपना गन्तव्य मार्ग पहचानते हैं । ( संसार मेपमनोवृत्ति है ) गतानुगतिको लोकः ॥ ४७३ ।। साधारण लोक (विचारशील न होकर ) गतानुगतिक (भेडा चाल ) होता है। विवरण- बुद्धिमान् लोग प्रकृत विषयपर पूर्ण विचार कर, अहितकर मार्ग त्यागकर हितकरको अपनाते हैं । मूढ लोग प्रकृत विषयपर स्वयं कोई विचार न करके, दूसरेके चाहे या कहे अनुसार आचरण करते हैं। उनके पास वस्तु-विवेक करनेवाली बुद्धि नहीं होती । वे सब कुछ संसारकी देखादेखी करते हैं। वे घुडदौडके घोडोंके समान लोकप्रवाहमें दौरा करते हैं।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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