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________________ सन्तान मातापिताके समान ४१७ संयम, क्षमा आदि मानवोचित गुणोंसे गुणी होनेका प्रमाण नहीं है। कई लोग अवस्थावृद्ध, विधावृद्ध, धनवृद्ध, यशोवृद्ध, भाग्यवृद्ध या संयोगवृद्ध होनेपर भी अत्यन्त निर्गुण होते हैं । कईवार तो देखा गया है कि जहां यश होता है वहां धूर्तताकी ज. पाताल तक गहरी चली गई होती हैं। यश और धूर्तताका प्रायः साथ पाया जाता है । बडप्पन्नोंके पीछ धूर्तताके विराट अड्ड पाये गये हैं । अपाधारण दहिक प्रदर्शन, असाधारण भोजनाडंबर, आत्मभरिता, दिखावटी, त्याग, तपस्या और मुनिवेश धोखकी टट्टियां पाई जातो हैं । इसलिय मनुष्य को इन यशोव्यवसायी बड़े समझे हुए लोगोंसे सावधान रहना चाहिये। किसीका बड़प्पन या यश देखकर मविचारित रूपसे उससे प्रभावित नहीं होजाना चाहिय । घनिष्ट निरीक्षण के पश्चात् ही किसीका विश्वास करना चाहिये । __ ( दुष्प्रकृतिवाले मारवान नहीं बनते ) सुजीर्णोऽपि पिचुमन्दो न शकुलायते ॥ ४५७ ।। जैसे अति पुराना भी नीमका काठ, लचित्र ( चाकृ ) बनाने के काम नहीं आता. इसी प्रकार दुष्ट प्रकृतिके लोग पुराने पडकर भी अपनी सारहीनता नहीं छोड दत और सारवान नहीं बन जाया करते। विवरण-जैसे कुत्ते की पूछ बारह बरस नलकी में रक्खी जानेपर भी अपना टेढापन नहीं त्याग देती इसी प्रकार गुणहीन लोग पुराने होजानेसे अपने दुरभ्यास नहीं त्याग देते । ( सन्तान मातापिताके समान ) यथा बीजं तथा निप्पत्तिः ॥ ४५८ ।। जैसा बीज वैसा फल । विवरण-- जैसी जिपकी कारणशक्ति वैसा उसका फलांवपाक । जैसी बुरी-भली मंत्रणा वैसा ही कार्य । जैसे माता-पिता या समाज वैसे ही २७ (चाणक्य.)
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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