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________________ ४१२ चाणक्यसूत्राणि __ असौभाग्यं ज्वरः स्त्रीणाम् । (वृ. चाणक्य ) पतिघ्रता न होना, पतिपुत्रादिसे वंचित होना तथा विनयादि उपर्युक्त गुणों से हीन होना स्त्रियों के लिये ज्वरके समान दुःखदायी स्थिति है। ( अधिक सूत्र ) सौभाग्यं कतुराचारता । पतिके सदाचारके सदृश आचार बनाकर रखना ही पत्नीका सौभाग्य है। (वैध जीविका शत्रुकी भी अनाश्य) शत्रोरपि न पतनीया वत्तिः ॥ ४५० ॥ शत्रुकी भी वैध ) जीविका नष्ट नहीं करनी चाहिये। विवरण- समाजका शत्रु मनुष्यमात्रका शत्रु होता है। समाज में भशान्ति फैलानेवाला ही मनुष्यका शत्रु होता है । शान्तिरक्षाके लिये शत्रुदमन करना भी मनुष्य का कर्तव्य है । परन्तु ध्यान रहे कि शत्रुकी अशान्तिकारक प्रवृत्तियां ही दमनीय होती हैं। शत्रुके आहारके साथ मनुष्य. समाजकी कोई शत्रुता नहीं है । शत्रुको यदि वह वैध आहार कर रहा है तो उससे वंचित कर देना उसे माहार संग्रह के लिये समाजपर और अधिक माक्रमणके लिये विवश करना होजाता है । शत्रु को उसके वैध माहारसे वंचित कर देना समाजकी शान्तिपर अधिक भाक्रमण करवाना होजाता है । अपनी वैध जीविकाका अधिकार तो आततायीको भी है । जब वह समाजपर आक्रमण करता है तब उसकी आक्रामक प्रवृत्तिको न रोककर उसकी वैध जीविकामात्र रोक देनेसे उसकी आक्रमण प्रवृत्ति दुगनी प्रोत्साहित होजाती है। यह समझ लेना चाहिये कि आततायीको मिटाना तथा उसकी वैध जीविका नष्ट करना या दो अलग अलग परिणाम रखनेवाली दो अलग बातें हैं। माततायीका बाल बांका न करसक कर उसकी वैध जीविकापर माक्रमण करनेसे उसका आततायीपन नष्ट नहीं होजाता।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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