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________________ ३९२ चाणक्यसूत्राणि नैर्मल्य, उससे बुद्धिकी प्रखरता, नरोग्य तथा आयुकी वृद्धि होती है । }- गुरुपरम्परासे प्राप्त, २ग्रन्थोंमें अलिखित परन्तु विशिष्ट कुलोंमें प्रच चित, तथा ३- शास्त्रों में उल्लिखित भेदसे सदाचार तीन प्रकारका होता है । ( अवक्तव्य ) प्रियमप्यहितं न वक्तव्यम् ॥ ४३१ || अहितकारी प्रियवचन कभी न कहना चाहिये । विवरण - हितकारी कटु बात तो कह दे, परन्तु किसीको अनुचित उपायों से प्रसन्न करने या ठगनेके लिये अहितकारी प्रिय वचन, न बोले । अहितकारी प्रिय वचन समाजहित के लुटेरे आततायियों को ही प्रिय लगा करता है । जिसे अहितकारी प्रिय वचन अच्छे लगते देखो उसे निःशंक होकर आततायी मान लो । यदि किसी राष्ट्रके प्रमादसे उसकी राज्यशक्ति उजले वस्त्र पहननेवाले प्रभुतालोभी धूर्तोंके हाथोंमें जा फंसी हो तो समझना होगा कि इस राष्ट्रने अपने हितोंको तिलांजलि देकर समाजके शत्रु धूर्तोंको ही राष्ट्रपर प्रभुता करनेका अधिकार दे रक्खा है । तब समझना होगा कि वह राष्ट्र उन प्रभुताकोभी आततायियोंके कानको प्यारे लगनेवाले, उनकी आसुरिश्ता की ही चाटुकारिता करनेवाले वचनों, देखों, व्याख्यानों, नारों तथा प्रचारोंसे लुटेरे, धूर्त मसुरों को प्रसन्न करने में लगा हुआ है और समाज अहितकारी असुरराजका ही समर्थक बन गया है J यह स्थिति किसी भी राष्ट्रके लिये महान् संकटकी स्थिति है। ऐसे राष्ट्रीय संकटोंके अवसरपर समाजका सच्चा हित चाहनेका अभिमान करनेवाले लोगोंको आगे जाना चाहिये । प्रभुतालोभियोंके मिथ्या प्रचार में सम्मिलित होने से न केवल बचना चाहिये प्रत्युत उसका विरोध करना चाहिये । समाजहितैषी लोगों को प्रभुतालोभियोंकी आसुरिकतापर चोट पहुंचानेवाले, उन (सामाजिक लुटेरों) की दुरभिसंधियोंका भण्डाफोड करके उनके सन्तापक समाजका सच्चा हित करनेवाले असुरविध्वंसी सत्यका प्रचार करके राष्ट्र के
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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