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________________ सर्वश्रेष्ठ तपस्या ३७९ सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः । येनाकमन्त्यषयो ह्याप्तकामा यत्र तत् सत्यस्य परमं निधानम् ॥ ( संसारमें सर्वत्र सत्य को धक्के लगनेपर भी सच्चोंके हृदयों में ) सत्यकी ही विजय होती है । अनृतको ( सच्चे लोगोंके हृदयोंमें ) कभी भी विजय प्राप्त नहीं होती । ( अनृत चाहे सारे संसारपर राज्य करने लगे परन्तु उसे सच्चोंके हृदयमें नियमसे पराजित, अपमानित, धिकृत और अस्वीकृत होकर रहना पड़ता है। ) देवतामोंका मार्ग सत्य से पुरा पड़ा है। माप्त काम अषिलोग उसी सत्य के मार्गसे दैवत्वको प्राप्त हुए हैं । आप्तकाम लोग जिप्स पवित्र मानसिक स्थिति में रहते हैं या रह रहे हैं वही सत्यका सनातन निवासस्थान है। (सर्वश्रेष्ठ तपस्या ) नास्ति सत्यात्परं तपः ॥ ४१७ ॥ संसारका कोई भी तप सत्यस श्रेष्ठ नहीं है। विवरण- मनुष्यसमाज सार्वजनिक कल्याण में सामकल्याणबुद्धि दी सत्य है । कामनातीत स्थिति ई पत्य है। कामामता मनुष्यको मापात. मधुर हानिकारक, मनुष्यताविनाशक, पतनकारिणी आमुरी प्रवृत्ति है । परन्तु कामनाक विना मनुष्योचित जीवनयापार भी नहीं चलता। मनु. ज्यको कामनाओं के सदस्योगकी कला सीखनी चाहिये । मनुष्य कामनातोत बनने में ही कामनाओं का सदुपयोग कर सकता है। कामनाओं का सदुप. योग ही कामनातीत स्थिति पा लेना बन जाता है । मनुष्य निकामस्थिति पाना अपना लक्ष्य बना लेने पर जो कुछ करता है सब फलाकांक्षारहित समाजकल्याणरूपी कर्तव्यपालन का रूप धारण कर लेता है। वास्तविकता यह है कि मनुष्य इस संसारमें कुछ लेने या कुछ पदार्थों का अस्थाई स्वामित्व पाने नहीं आया। वह तो इस सीनिर्माण का रहस्य समझने अपने तथा सृष्टिविषयक मिथ्या कल्पनाओं का विनाश करके ज्ञानमय लोकका निष्ठा. वान् सदस्य, अथवा अपने हृदयसिंहासनका सत्यरूपसम्राट बनने के लिये
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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