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________________ ३७४ चाणक्यसूत्राणि विवरण- वे संसार में अपने संयत चरित्रसे समाजको कल्याण तथा शान्तिका मार्ग दिखानेवाले मार्गदीप के रूप में अवतीर्ण होते हैं। देश में जितेन्द्रिय लोगोंके उदाहरणोंका बाहुल्य होनेसे देश क्षोभ, उत्तेजना और दुचिन्तासे हीन होकर शान्तिपूर्ण बन जाता है । समाजका यथार्थ हित इसी में है कि तपस्वी लोगोंक उदाहरण उसके बालनारायणको अधिक. तासे दीखें, जिससे उनकी बुद्धियें जितेन्द्रियता की ओर प्रवृत्त होजाये तथा बुरे उदाहरण उनके सामने आयें भी तो वे अपमानित, अनुत्साहित और तिरस्कृत रूप लेकर आयें । ( परदाराभिगामी समाजकी शान्तिका शत्रु ) परदारान् न गच्छेत् ॥ ४१२ ॥ पर पत्नियोंसे संपर्क स्थापित करने की बात मनसे भी न सोचे । विवरण - ऐसा करना अग्निमें अनिक्षेप जैसा भयंकर उत्तेजना पैदा करनेवाला महाअनिष्ट व्यापार है । इस प्रकारकी दुष्ट प्रवृत्तियोंपर कठोर संयम रखने में ही मानवकी तथा उसके सामाजिक जीवनकी शान्ति संभव है । जीवन में इस प्रकार के प्रज्ञापराधोंको कार्यकारी बन जाने देनेसे इन्द्रियचांचल्य, मानसिक शक्तिका हास होकर मानवोचित समस्त गुणका निश्चित विनाश होजाता है और मानव अपनी आराध्य शान्तिके मद्दान् आदर्शसे च्युत होकर अपने जीवनको नरक बना लेता और अपना सामाजिक मूल्य फूटी कौडीका भी नहीं छोड़ता । पाठान्तर - परदारान् मनसापि न गच्छेत् । परपत्नियों से संपर्क स्थापित करनेकी बात मनसे भी न सोचे । ( अन्नदानका माहात्म्य ) अन्नदानं भ्रूणहत्यामपि प्रमार्ष्टि ॥ ४१३ ॥ अन्नदान भ्रूण हत्याका भी परिमार्जन कर देता है ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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