SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भार्यात्वकी सफलता ३५३ ( सुपुत्रविना सुख की असंभवता) नाऽनपत्यस्य स्वर्गः ॥३८८ ॥ जिसका पुत्र सुपुत्र नहीं होता उसे सुख प्राप्त नहीं होता। विवरण-सुसन्ततिहीन पुरुषको शुद्ध वंशपरम्परा चलाने या सृष्टि. रक्षामें सहयोग देनेका हर्ष प्राप्त नहीं होता। अपने जैसे दो चार, दस पांच प्राणी उत्पन्न होने का कारण बन जाना यह साधारण पुरुषको मानसिक स्थिति है। उच्च श्रेणीके उधरता दान्त लोग अपने शरीरसे, अपने जैसे पैदा करनेका प्रयत्न न करके लोगोंको विचारों में अपने जैसे शुद्ध, सदार, सदाचारी बनाने का प्रयत्न करते हैं और आजन्म उर्वरता रहकर समाजको सदगुणी बनानेकी तपस्या किया करते हैं । य लोग नेष्ठिक ब्रह्मचारी कहाते है । नैष्ठिक ब्रह्मचारी लोग अपना विद्यावंश चलाकर भार्ष सम्प्रदायको जीवित रखते हैं । सारे विद्वान् इन्हीके अपत्य हैं । ( भार्यात्वकी सफलता ) या प्रसते ( सा) भार्या ।। ३८९ ।। सुप्सन्तानकी जननी ही पतिकी सच्ची भार्या है । सुसन्तानोस्पत्ति में ही भायात्वकी सफलता है। विवरण- भार्यामें सुपुत्र-जनकतासे ही विशेषता तथा मान्यता आती है। वह इस सृष्टि व्यवस्थाका ही अंग है । सृष्टिव्यवस्था समस्त प्राणियोंकी परम्परा चलाने के लिये जैसे पशुपक्षियों को दाम्पत्य धर्म में दीक्षित करती है वैसे ही मानवोंको भी करती है। शारीरिक दृष्टि से अपने जसे प्राणी उत्पन्न करना पशुओं का स्वभाव तथा मानसिक दृष्टिले उदार मानवोंको सष्टिमें आने का अवसर देना मानवका कतव्य है । समाजको योग्य सदस्य देना गृहस्थाश्रमका उत्तरदायित्व है। अयोग्य, पापी, दुराचारी मनुष्य उत्पन्न करना गृहस्थाश्रमका कलंक है। ऐसे नराधम पैदा करने से तो भाका वन्ध्या रहना ही अच्छा है । २३ (चाणक्य.)
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy