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________________ सच्चा पुत्र ३५१ भारवाही मात्र न रहने देकर उन्हें मादर्श राष्ट्रसेवामे दीक्षित कर देता है । पिता-माता बननेवालोंका धर्म है कि वे राष्टमें मनुष्यताकी परम्पराको जीवित रक्खे । पुत्रकी सार्थकता इसी में है कि भूमिष्ठ होकर माता-पिताको दुराचार, उच्छंखल निमर्याद जीवन बिताने रूपी दुर्गतिसे रोक ले तथा उनके शारीरिक दृष्टिसे असमर्थ दिनोंमें उनकी उचित सेवा करके उन्हें क्लेश, संताप तथा शोकरूपी नरकसे उबार ले । योग्य गुणी सत्पुत्रों को सेवासे वंचित रहना ही माता-पिताकी दुर्गति है। उन्हें तब ही ठंडक पडती है जब उनका पुत्र पवित्र होता है। मातापिता सुसन्तानकी कामनासे ही संतानपालन धर्मका आचरण करें इसीमें उनका तथा उन्हें पालनेवाले राष्ट्रका कल्याण है। माता-पिताका सन्तानपालन धर्म सार्थक होजाय और उनका पुत्र गुणी बन जाय यही उनका स्वर्ग है। माता-पिताका सन्तानपालन धर्म सार्थक न हो और उन्हें कुपुत्रों के मुख देखने पढे यही उनकी दुर्गति है । " सहेव दशभिः पुत्र और वहति गर्दभी" गधी दस बेटोंकी माँ होती हुई भी उन्हीं के रहते उन्हींके साथ बोझ ढोती ढोती मर जाती है। जैसे उसे उन दसों पुत्रों के होनेका कोई गुण नहीं लगता, इसी प्रकार अयोग्य सन्तानोंसे मातापिताका कोई लाभ नहीं है। अपने जैसे प्राणी तो कीडे मकौडे भी उत्पन कर लेते हैं। मयशस्वी पुत्रोंका माता-पिता बनजाने में कोई महत्व नहीं है। अब भाप देखिये माता-पिता बनने की इच्छा करना कितना बड़ा उत्तरदायित्व है। जबतक माता-पिता लोग अपने घरोंको ऋषियोंकी तपोभूमि और वैदिक विश्वविद्यालय नहीं बना लेंगे तबतक उनका दुर्गतिनिवारक संतान पाना असंभव है । देशको सुसन्तान मिलना बन्द होजाना ही माजका रोना है । जबतक देश की जनता और राज्यव्यवस्था सुसन्तानों के निर्माणका सुनिश्चित प्रबन्ध नहीं करेगी तबतक देशका दुर्गत रहना भनि. वार्थ है।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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