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________________ विद्वत्ताविरोधी आचरण होता । मण्डनप्रियका कामी होना अनिवार्य है। ज्ञानीलोक मनुष्यकी हार्दिक सम्पत्ति या शोभा है । देह सजानेके लिए आभरणों की अपेक्षासे मनुष्यकी देहात्मबुद्धि प्रकट होती है । आभरणोंसे सजावट देहात्मबुद्धिको प्रकट करनेवाली चंचल स्थिति है। सच्चा वैदुष्य मनकी स्थिरता में ही प्रकट होता है। जहां मनकी स्थिरता होती है वहां बाह्य चपलता या लघुताको स्थान नहीं मिला करता । ३२७ अथवा पिछले नौवें सूत्र में वर्णित राज्याधिकारियों की दूसरी कुशलता वैदुष्य है । उनका वह वैदुष्य उनकी अनुद्धत सोम्य वेषभूशासे स्पष्ट होना चाहिये । वह मण्डनप्रिय वैदुष्य न होना चाहिये | कामासक्त निम्न श्रेणीके लोग ही मण्डनप्रिय होते हैं । मण्डनप्रियता मनुष्यको अन्तःसार हीनताकी सूचना है। जिसका मन सुशोभित नहीं है जिसके मनमें अभिमान करने योग्य मनुष्योचित सद्गुण नहीं है, वही बाहरके कृत्रिम भौतिक सौन्दर्य से सजना चाहता है | वेशभूषाको अलंकृति से सम्मान पाना चाहनेवाला अपनी विद्याको अपमानित करके उसे अपनी वेशभूषा में छिपा लेता है । अपनी विद्याको वेशभूषा में छिपानेका अर्थ छिपानेवालेकी विद्याका मूल्यहीन होना है । उसकी दृष्टि में विद्याका उतना मूल्य नहीं है जितना अलंकारोंका है। कृत्रिम उपायोंसे सम्मानित होनेकी इच्छा मनुष्यकी मूढता है । विद्वत्ता स्वयं ही संसारका सर्वश्रेष्ठ अलंकार है । सच्चा विद्वान् अपनी विद्याके गौरव से गौरवान्वित रहता है अलंकृति से नहीं । जो अपनेको वेशभूषासे सजाता है उसकी विद्या में भोज, तेज तथा ब्रह्मवर्चस नहीं है । वह अनार्यविद्या है। सुयोग्य राज्यकर्मचारियोंका वैदुष्य सुन्दर सिले, सुन्दर धुळे वस्त्र, सुगंधित प्रसाधनों, दैनिक क्षुरकृत्योंसे उत्पन्न होनेवाले सौन्दर्यपर निर्भर न होकर उनका वैदुष्य चारित्रिक श्रेष्ठता से प्रभावशाली रहनेवाला वैदुष्य होना चाहिये । पाठान्तर-- वैरूप्य मलंका ......... 1 विरूपता अलंकारोंसे तिरोहित होजाती है । यह पाठ महत्वहीन होनेसे अपपाठ है ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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