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________________ ३१२ चाणक्यसूत्राणि वाग्जाल या मोहजालमें न फंसकर अपने राष्ट्रको बचायें। यदि वे ऐसी भूल करेंगे तो उनका उनके मोह में फंस जाना तथा राज्यसंस्थाके भेद दे बैठना अनिवार्य होजायगा तथा राष्ट्रका मंत्रभेद होकर उनकी यह स्च्यासक्ति राष्ट्रके सर्वनाशका कारण उपस्थित करडालेगी। पाठक फिर देखें यह स्त्रीनिन्दाका प्रसंग नहीं है किन्तु राज्यमें काम करनेवालोंके लिये सावधान वाणी है । " यो यस्मिन् कर्मणि कुशलः स तस्मिन् योक्तव्यः " इस पहले छठे सूत्रमें राज्याधिकारियोंकी जिस कुशलताका वर्णन है उसी में एक कुशलता स्त्रीविषयकी उपेक्षा भी है। मार्य चाणक्य चाहते हैं कि जो राज्याधिकारी परे जितेन्द्रिय सिद्ध हो चुके हो, जिनमें स्त्रियों के सम्पर्कसे न डोलने की स्थिरबुद्धिता हो वे ही राजद्रौटः मादि उत्तरदायित्वपूर्ण पदोंपर नियुक्त किये जाने चाहिये। पाठातर- न समाधिः स्त्रीषु लोलता च । नियों में सौम्यता, शान्ति और निरपेक्षता नहीं होती वे चंचल तथा मस्थिरमति होती हैं। विचारशील लोग इनके मायापाशसे बचें तथा राष्ट्रको बचावें । ( जीवन में माताका सर्वोपरिस्थान ) गुरूणां माता गरीयसी ॥ ३६२ ।। सब गुरुओंमें माताका सर्वोच्च स्थान है। विवरण- पहले सूत्र में स्त्रीजातिकी त्रुटि दिखाकर इस सूत्र में माताको सर्वोच्च स्थान देनेका यही स्पष्ट अभिप्राय है कि जो समाज मातजातिको मज्ञानान्धकारमें रखता है उससे वह स्वयं ही रोगग्रस्त होजाता है। पुरुष. जातिपर यह उत्तरदायित्व है कि वह मातृजातिको उसका उचित प्राप्या गौरवमय स्थान देकर स्वयं उन्नत हो।। उपाध्यायान् दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता। सहस्रं तु पितृन् माता गौरवेणातिरिच्यते ॥ ( मनु)
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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