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________________ वेशभूषा कैसी हो? २९३ तथा मुझे उसे इसका यथार्थ उत्तर देनेका अधिकार भी है या नहीं ? यदि प्रश्नकर्ताको अधिकार न हो, या हमारा उसे उसके प्रश्नका यथार्थ उत्तरदेना कर्तव्य न हो, तो दोनों भवस्थानों में बातको किसी भी प्रकार टालदेना चाहिये या अयथार्य उत्तर देकर उसकी अनधिकारचेष्टापर आघात करना चाहिये । सत्यवादी या यथार्थवादीपनके भ्रममें आकर चाहे जिसे चाहे जो बात बताकर समाजका भकल्याण करबैठना नीविहीनता है। समाजका कल्याण ही प्रश्नोत्तरोंके औचित्यकी कसौटी है। प्रश्नकर्ताकी समाजहितैषिता तथा उत्तरका समाजहित के लिये औचित्य स्पष्ट देख लेनेपर ही प्रश्न करना तथा उसका उत्तर देना उचित होता है। अन्यथा प्रश्नो. त्तरोंके व्यर्थ तथा अहितकारी होनेसे उन्हें त्यागदेना ही कर्तव्य होता है। मनुष्य यह जाने कि कुछ उत्तर न देना भी उत्तर देने का ही एक निराला ढंग है। मौनसे भी तो अपना मनोभाव या कर्तव्य व्यक्त किया जासकता है । व्यर्थभाषण रोकने के लिये मौन ही उसका प्रासंगिक उत्तर है। व्यर्थवचन वचनसे ही वृद्धि पाता है । व्यर्थवचनकी बढबारको रोकना ही स्पष्ट कथन के रूप में परिस्थित्यनुसार अपनानेयोग्य है। इसके विपरीत जब विश्वासपात्र लोगों को उत्तर देनेका प्रसंग माव तब न तो प्रश्नका कुछ भाग अनुत्तरित छोडना चाहिये तथा न अपृष्ट बातें कहकर वक्तव्यको लम्बा करना चाहिये । मितभाषी रहकर उत्तर देना चाहिये। जब कोई प्रश्न विवादका विषय बनरहा हो तब प्रसंगको न समझकर उत्तर देनेसे विवाद तथा वितण्डा पैदा होजाती है । अनुचित भाषण करने वाला मनुष्य निन्दित होता तथा न्यायालयोंमें दण्डाई मानाजाता है । ( वेशभूषा कैसी हो ?) विभवानुरूपमाभरणम् ॥ ३३०॥ मनुष्य अपने देहकी सजावटको अपनी आर्थिक स्थितिम सीमित रक्खे । विवरण- देहको सुसजित रखना समाजमें प्रचलित है । मानवका
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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