SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तपस्विनी स्त्रियां अनुपमरत्न ૨૭૨ विवरण- गुणीके गुणका कोई मूल्य नहीं होता। उसका गुण संसारी बाटोंसे नहीं तोला जासकता। विपुलतम भौतिक संपत्ति भी गणों की यथोचित पूजा नहीं कर सकती । यद्यपि रत्नों के व्यापारी रनों का मूल्य क लेते हैं परन्तु अपार वैदुष्य, अगाध गाम्भीर्य, उच्च चारित्र्य, अनुपम धैर्य, अप्रतिहत वीरता, सभापाण्डित्य, यशमें रुचि, साहस, संयम, सहन मादि गुणों से सम्पन्न पुरुषोंका मूल्य निर्धारित नहीं किया जासकता । गुणी लोगोंके गुण उनके मात्मसंतोषसे स्वयं पूजित रहते हैं। वे बाह्य जगत्के प्रमाणपत्रों के प्रतीक्षक नहीं होते। गुरून् कुर्वन्ति ते वंश्यानन्वर्था तैर्वसुन्धरा । येषां यशांसि शुभ्राणि हृपयन्तीन्दुमण्डलम् ॥ वे लोग अपनी महिमासे अपने कुल में उत्पन्न होने वाले सबको ही बड़ा बनादेते हैं, उन लोगों के संपारकी महत्वपूर्ण विभूति होनेसे वसुन्धरा उनके कारण सच्चे अर्थों में वसन्धरा कहाने लगती है, जिनके निष्कलंक शुभ्रयश अपने सौन्दर्यसे चन्द्रमण्डलको भी नीचा दिखा देते हैं । धन्य हैं वे देश जहां ऐसे पुरुषरत्न उत्पन्न होते तथा जहां के लोग अपनी शिक्षाशालाओं को ऐसे पुरुष उत्पन्न करनेवाली बनाकर रखते हैं। ( सच्चरित्र तपस्विनी स्त्रियाँ राष्ट्र के अनुपमरत्न ) न स्त्रीरत्नसमं रत्नम् ॥ ३१३ ॥ कुलभूषण सहधर्मिणीके समान संसारमें कोई रत्न नहीं है। विवरण- जाति कुलधों को संरक्षिका, सच्चरित्रा, तपस्विनी, सहधर्मिणियों जैसा संसारमें कोई रत्न नहीं है । स्त्रीरत्न महापुरुषों को कोखमें धारण करनेवाली माता है। वह अपने पवित्र, उदार, तेजस्वी, तपस्वी विचागेसे महापुरुषोंका निर्माण करती है। जिस देश में पुरुषसिंह उत्पन्न करने. वाली जगद्धात्री जगन्माताका प्रत्यक्ष प्रतीक मादर्शसन्तानपालिनी स्त्री रूप. धारी रत्न उत्पन्न होते हैं वह धन्य है ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy