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________________ अश्लील भाषण अग्राह्य अपनी मधुरभाषितासे लोगोंके मारमीय बनकर उन्हें नष्ट करडालते हैं"आर्जवं हि कुटिलेषु न नीतिः।” धूतों के साथ सरलता नीति नहीं है किन्तु नीतिहीन विनाशक व्यवहार है। ( अश्लील भाषण अग्राह्य ) म्लेच्छभाषणं न शिक्षेत् ।। ३०३ ॥ म्लेच्छकी भाषा न सीखे। विवरण- म्लेच्छोंमें प्रचलित असभ्यभाषण, गन्दी गाली, अपमानकारी अरुन्तुद (मर्मभेदक) वाणी भइलील लोकोक्ति, कामोत्तेजक उपन्यास, गल्प कथा आदि सब म्लेच्छभाषणकी श्रेणी में भाते हैं। लोगों की कुरुचि पुरा करने तथा सुरुचिको नष्ट करने वाला समस्त कविता कहानी आदि साहित्य म्लेच्छभाषणमें सम्मिलित हैं। विद्वताकी चादर मोढे हुए इन कुविद्या प्रचारक म्लेच्छों के मुंह पर किसी प्रकारकी लगाम नहीं होती । ये समाज अधःपतित म्लेच्छलोग, माताओं, बहनों तथा पुत्रपुत्रियों नि:शंकमावसे पढाने समझानेयोग्य साहित्यसर्जन करना ही नहीं जानते । जैसे गन्दा भोजन करनेवाल के मुखसे गन्दी डकारें आती हैं इसीप्रकार इन कुरसभोजियों के साहित्य में से असह्य दुर्गन्ध आती है । ये लोग सब समय सभ्य-समाजको परिपाटीके विरुद्ध अपनी जिद्वारूपी छरी चलाते हैं। समाज के शिक्षाविभाग शिक्षकपदोंपर ऐसे लोगों का प्रवेशाधिकार रोकने के लिय दुर्ग. रक्षक हथियार बन्द प्रहरीके समान समाज के सर्वतोमुखी ज्ञान खडगको सदा सन्नद्ध रखना चाहिये। यदि शिक्षा के नामपर समाज फेकनेवाले इस म्लेच्छपन को नहीं रोका जायगा तो समाज मनुष्यत्वहीन होकर आसुरिक. ताका क्रीडाक्षेत्र बनजायगा । गोमांसवादका यस्तु विरुद्धं बहु भाषत। सर्वाचारपरिभ्रष्टो म्लेच्छ इत्यभिधीयते ॥ जो गोमांस खाता, मयपूर्ण प्रत्यक चार व्यवहार पर कटाक्ष करता, उपदंश, कण्डति आदि रोगबालोंके उच्छिष्ट पात्रों में खान-पान करता तथा किसी भी भाचारधर्मका पालन नहीं करता वह ' म्लेच्छ ' कढ़ाता है।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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