SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीचसे विद्याग्रहण हानिकारक मिथ्या पराक्रम की व्यर्थता प्रकट हो जाती है। विवेकपूर्वकारीको सिद्धिका कोई डर नहीं होता। पाठान्तर- इन्द्रियाणा प्रशमनकार शास्त्रम् । इन्द्रियोंकी लम्पटताके निवारकको शास्त्र कहते हैं । अशास्त्रकार्यवृत्ती शास्त्रांकुशं निवारयति ।। ३०१॥ अवैध कार्य करनकी भावना आनेपर शास्त्रांकुश ( जितेन्द्रियमनका अंकुश ) उस रोक लेता है। विवरण- इन्द्रियों के साथ विषयों का संपर्क होकर मनमें अकार्य करनेकी उत्तेजना थाजानेपर जितेन्द्रियतारूपी हृदयस्थ जीवितमात्र उत्ते. जित इन्द्रियों को अपने ज्ञानाङ्कुशसे वशीभूत करके उन्हें कुमागसे निवत करता है। पाठान्तर- अकार्य प्रवृत्ती शास्त्राङ्कुशं निवारयति । अवैध कार्य करने की अभिलाषा उत्पन्न होते ही विवेकी मन में उस दुर. भिलापाके प्रति भयंकर विद्रोह खडा होजाता है जो उसे कार्य रूपमें परि. गत नहीं होने देता। ___ अपनी दुराभिलाषाको रोकनेसे मनमें एक ऐसी अदम्य शक्ति पैदा होतो है जो मनुष्यको महापुरुष बनादेती है। अपनी शक्तिको दुरूपयोगसे रो के रहन! हो मानवका महात्मापन या महापुरुषता है। नीचसे विद्याग्रहण हानिकारक नीचस्य विद्या नोपेतव्या ॥३०२॥ नीचकी विद्या ( शास्त्रज्ञान ) नहीं लेनी अर्थात् अग्राहा होनी चाहिये। विवरण- नीचकी विद्या नीचताका ही साधन हुई रहने के कारण अविद्याके नामसे निन्दित होने योग्य तथा घृण्य होती है । नीची विद्या
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy