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________________ धनहीनताकी हानि धनोपासक न होकर बुद्ध युपासक हैं इसीलिये तो ये लोग निर्धन हैं । यह समाजका सौभाग्य है कि ये लोग धनोपासक न होकर निर्धन हैं। यदि ये लोग भी धनोपासक होजाते तो समाजमें सबद्धिको कहां भाश्रय मिलता? सद्बुद्धि सिद्धान्तसेवी होने के कारण अपने सेवकोंको सदा धनोपासनासे निवृत्त अतएव निर्धन बनाये रखती है। परंतु इस प्रकारके लोग राष्ट के अमूल्य धन हैं। जिस समाजका लक्ष्य धनोपासना होजाता है उस समाजमें से मनुष्यतारूपी अक्षय संपत्ति लुप्त होजाती तथा उसमें मासुरी प्रवृत्तिका प्रबल होना अनिवार्य होजाता है । (धनहीनताकी हानि ) हितमप्यधनस्य वाक्यं न शृणोति ।। २९२॥ निर्धनके हितवचनोंपर भी कोई कान नहीं देता। विवरण- किसी समाजका धनोपासक होजाना, इस बातका प्रमाण है कि यह समाज अपनी हिताहित बुद्धि खोबठा है। इस दृष्टि से धनसंपनिको जीवन का लक्ष्य बनालेना स्वविनाशक तथा समाजद्रोही कल्पना है। इसलिये है कि धनोपासक लोगोंको समाजके हिताहितको कोई अपेक्षा नहीं रहती । समाजहितकारी लोगोंका धनोपासक होना असंभव है ।सार समाज में समाजका हित करनेकी बुद्धि को जाग्रत रखना बाजाका कर्तव्य है। यही तो मुख्य राजधर्म है । जिस समाजमेंसे समाजहित करने की भावना लुप्त होजाती है उस पतित समाजकी बनायी हुई राज्यसंस्था, समाजद्रोही मासुरीराज्य बनजाता है । राजाका उत्तरदायित्व है कि समाज के लोगोंको समाजको हिताहित बुद्धि की चेतना प्रदान करता रहे। उसका यह भी उत्तर दायित्व है कि वह समाजके हितकी बात कहने की योग्यता रखनेवाले निर्धन व्यनियोंको समाजमें शीपस्थानीय मान्य तथा पूज्य बनाकर रक्खं । इस. लिए रखे कि समाजके ये निधन बुद्धिमान लोरा राजशकिसे प्रोत्सा
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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