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________________ चाणक्यसूत्राणि विवरण- मनुष्यकी कर्तव्यबुद्धि हो अपने समाजको जीवित रखनेवाली महौषध है | मनुष्यजीवनका एक भी क्षण समाजकी सच्ची सेवा करने के कर्तव्य से हीन नहीं रहना चाहिये | मनुष्यका संपूर्ण जीवन कर्तव्यमय है । इस जीवनव्यापी कर्तव्यको छोडकर मानवजीवन में नैष्कर्म्य स्थितिको अपनानेका कोई अवकाश नहीं है । जीवनकालमें मनमें ऐसी भावनाको स्थान देना कि " हमारा कर्तव्य समाप्त होचुका अकालमृत्यु नामक अमानवीय स्थितिको अपनाना है । अपने जीवितकालको कर्तव्यद्दीन स्थितिमें बिताना अज्ञानकी मौत मरजाना है । जब तक जीवन है तब तक समाज सेवारूपी ज्ञानमयी स्थितिको अपनायें रहना ही जीवन कहलानेवाली सच्ची स्थिति है । इस स्थितिको त्यागना ही मृत्यु है । अथवा- मृतके लिये औषधको आवश्यकता नहीं है । २४२ " औषध तो जीवनकालको आवश्यकता है । किसी भी साधनको काममैं लाने में प्रमाद न करना चाहिये । साधनके उपयोगके उचित समयको बीतने नहीं देना चाहिये । ' का वर्षा जिमि कृषी सुखाने ' पदार्थके ठीक उपयोगके समय ही उससे काम लेलेना चाहिये । इस उपयोगकालको टालना या टलने देना नहीं चाहिये । औषध रोगके लिये है मृत्युके लिये नहीं । जब औषधसे रोग न जानेपर भी औषध की जाती है तब उसका उद्देश्य कर्तव्य - पालनका सन्तोष होता है । पाठान्तर - न कालेन मृतस्योपधं प्रयोजनम् । ( कालका अर्थ भी मृत्यु ही है ) पूर्णायु भोगकर प्राकृतिक मृत्यु पाने.. वालेके लिये चिकित्साका प्रयोजन नहीं है । प्राप्तकालो न जीवति ' । " जब तक श्वास है तब तक मृत्युसे संग्राम करना कर्तव्य है । मरनेका समय आगया है ऐसी मनमानी कल्पना करके निश्चेष्ट बैठे रहना कर्तव्य हीनता है ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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