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________________ सफल जीवनकी निर्भयता २३७ सदाचार, विनय, विद्वत्ता, प्रतिष्ठा, सत्संग, भाक्त, जीवनयात्राकी सुकरता, तपस्या तथा दान ये नौ गुण मनुष्य के सरकुल में उत्पन्न होनेके लक्षण हैं। पाठान्तर- अकुलीनोऽप्यर्थवान् कुलीनाद्विशिष्टः । (नीच अपमानसे नहीं डरता) नास्त्यमानभयमनार्यस्य ॥२६१॥ नीचको समाज में अपने अपमान या तिरस्कारका कोई भय नहीं होता। विवरण- जैसे मलिन वस्त्रवाळेको वस्त्र मलिन होजानेका भय नहीं रहता, इसीप्रकार अनार्यतारूपी मलिनताको अपनानेवाले को अपमानका डर नहीं रहता। ( व्यवहारकुशलकी निर्भयता ) न चेतनवतां वृत्तिभयम् ॥ २६२ ॥ व्यवहारकुशल चतुर लोगोंको जीविका न मिलनेका कभी भय नहीं होता। विवरण- उनको व्यवहारकुशलता, प्रत्युस्ससमतिता, अनागतविधानृत्य आदि गुण ही उनकी जीविकाके प्रबल आश्वासन होते हैं। ( जितेन्द्रियको निर्भयता ) न जितेन्द्रियाणां विषयभयम् ।। २६३ ।। जितेन्द्रिय व्यक्तियोको विषयके सान्निध्यम पतित होने की कभी शंका नहीं होती। विवरण- विषयोंके सान्निध्यमें पतनकी शंका उन्हीं लोगों को होती है नो अजितेन्द्रिय होते हैं। ( सफल जीवन की निर्भयता ) न कृताथानां मरणभयम् ॥ २६४॥ संसारका रहस्य समझकर कर्तव्यपालन करने के द्वारा अपना जीवन सार्थक करलेनेवालोंको मृत्युभय नहीं होता।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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