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________________ स्वार्थलोलुप व्यवहार हानिकारक राजा राष्ट्रका सेवक है। यदि राजा राष्ट्र-सिंहासनारूढ होकर राष्ट्र के सत्यनिष्ठ धार्मिक व्यक्तियों की उपेक्षा तथा मधार्मिकों का सहयोग करके स्वेच्छाचारी बन जाय तो इसे अपनेपरसे सत्यका प्रभुत्व अस्वीकार करके असत्य का दास बनजाना कहा जायगा । राजा राष्ट्र-सेवामें तब बीसमर्थ हो सकता है जब वह सत्यरूपी सच्चे स्वजनकी उपेक्षा न करके उसे ही अपना नायक बनाकर रक्खे । यदि राजा सत्यरूपी स्वजनकी उपेक्षा करता है तो वह अपने सत्यद्रोहसे ही राष्ट्रद्रोही बन जाता है। वह राष्ट्रद्रोही होकर अपने राज्याधिकारका दुरुपयोग करता और उसे असत्यरूपी समाजके वैरि. योंके हाथों में सौंप देता है। राज्यसंस्थाको सत्यरूपी स्वजनों के हाथों में रखना राजाका सबसे मुख्य कर्तव्य है । जिस समाजके लोग सत्यरूपी स्वजनोंकी उपेक्षा करदेते हैं वहाँकी राज्यव्यवस्था देशद्रोही पापियोंके पंजे में फंस जाती, गुणी धार्मिक पुरुषों की उपेक्षा करती और मासुरिकताकोही प्राधान्य देदेती है। ( स्वजनों से स्वार्थलोलुप व्यवहार हानिकारक ) ( अधिक सूत्र ) स्वजनेप्वतिकामो न कर्तव्यः । अपने हितैषियों के साथ स्वार्थलालुप बर्ताव मत करो। उनसे पारस्परिक कल्याणका संबंध रक्खो। विवरण- सत्यनिष्ठ धार्मिक लोग ही सम्पूर्ण मानव-समाज के स्वजन हैं । स्वार्थान्ध लोग भौतिक लाभ देखते ही सत्यको त्यागकर असत्यका आश्रय लेकर अपना काम बनाने में संकोच नहीं करते। ऐसे स्वार्थान्ध लोग समाजके धार्मिक सदस्योंके साथ शत्रुता किया करते हैं। इसलिये करते हैं कि धार्मिककी सत्यनिष्ठा स्वाथलोभीकी स्वार्थीसिद्धि का विघ्न बन जाती है । सत्यनिष्ठ धार्मिक व्यक्तिको अपने स्वार्थ का साधन बनाने का दुःसाहस करनेवाले लोग अनिवार्य रूपसे समाज में अशान्ति उत्पन्न करनेवाले देशद्रोही हो जाते हैं । देश के राज्याधिकारको ऐसे देशद्रोहियों के हाथों में १५ (चाणक्य.)
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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