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________________ दुष्टोंको बलसे समझाना संभव २११ अथवा- अविकसित हृदयवालों तथा पातित्यप्रेमियों के साथ उनकी भविकसित तथा निकृष्ट बुद्धिको ध्यानमें रखकर बातें करनी चाहिये । मूर्ख शब्द अविकसितहदय तथा पतितहृदय दोनोंका ही वाचक है। वे हितकारी और सूक्ष्म बात नहीं समझते । पतितहृदय लोगोंसे हितकारी बात कहना व्यर्थ होता है। अविकसित हृदयवालोंसे सूक्ष्म बातें कहना व्यर्थ हो जाता है । उनके साथ गहन विषयों की चर्चा न करके खानेपीने भादि साधारण व्यवहारकी बातें करके उपस्थित शिष्टाचारके कर्तव्यको समाप्त कर देना चाहिये। आयसैरायसं छेद्यम् ॥ २३२॥ जैसे लोहेको लोहोंसे ही काटा जाता है, इसी प्रकार पतित हृदयवाले हठीले नीच मूर्खको हितोपदेश देकर अनुकूल बना. नेकी भ्रान्ति न करके उसे उसका जी तोड सकनेवाले कठोर शारीरिक दण्डोंसे पराभूत करना चाहिये। विवरण- प्रतिपक्षीके दम्भको चूर्ण करनेवाली अधिक दाम्भिकता तथा कठोरताको काममें लाकर ही उससे व्यवहार करना चाहिये । उसके साथ नम्रता और उदारता दोनों ही हानिकारक होती है । मूखों के साथ नम्र होजाना तो दुष्परिणामी है और उनके प्रति उदारता दिखाना व्यर्थ प्रयत्न है। पाठान्सर- आयसैरायसः छेद्यः । पाठान्तर- आयासैरायसं छेद्यम् । जैसे स्वभाव से कठिन लोहेका छेदन कठिन श्रमोसे ही संभव है, इसी प्रकार जितना ही कठिन कार्य हो उतने ही कठोर उपायोंसे काम लेना चाहिये। श्रमसाध्य कार्य श्रमसे ही संभव होते हैं। उपाय कार्योंकी स्थितिपर निर्भर होते हैं । लघु कार्य लघु उपायोंसे तथा बृहत् कार्य बृहत् उपार्योसे संभव होते हैं।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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