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________________ चाणक्यसूत्राणि दे बैठें, यही राज्यव्यवस्थाके प्रजाकल्याणकारी होनेकी कसौटी है | जब राजकर्मचारियोंका तथा प्रजाका इस प्रकार प्रेमका आदान प्रदान होने लगे तब इसीको प्रजातन्त्र या रामराज्य कहा जासकता है । राजा प्रजामें इस प्रकारका प्रेमका आदान प्रदान होते रहनेपर विश्वासघातका अवसर नहीं रहता । १३२ राज्यतन्त्र समस्त राष्ट्रकी घन, प्राण, शान्तिकी एक पवित्र धरोहर है । राज्यतन्त्र रूपी यह धरोहर अत्यन्त धार्मिक निक्षेपियोंके पास रखनेकी वस्तु है | उत्तम निक्षेपियोंको खोजनिकालना तथा राष्ट्रमें उत्तम निक्षेपी लोगों के निर्माणका प्रबन्ध बनाये रखना, राष्ट्रका स्वहितकारी कर्तव्य है । वही राजा और वे ही अमात्य आदि राजकर्मचारी वर्ग राष्ट्रकी इस पवित्र धरोहरको स्वीकार करने के योग्य हैं जो राष्ट्रके कल्याणमें ही अपना कल्याण समझते हों। यदि राज्यके कर्णधार लोग राष्ट्रकी इस धरोहरके प्रति अधार्मिक (बेईमान ) हो रहे हों; अपने व्यक्तिगत क्षुद्र स्वार्थको महत्व दे रहे द्दों, यदि वे शासितसे अलग अपनी लोभी शासक जाति बना बैठे हों, तो देशद्रोही हैं, राष्ट्रघाती हैं, और दण्डनीय हैं। राष्ट्रकी इस पवित्र धरोहरमेंसे स्वार्थसाधन करनेवालोंको दण्डित और पदच्युत करना प्रत्येक चक्षुष्मान् राष्ट्र तथा राष्ट्रप्रेमीका महत्वपूर्ण कर्तव्य है । राष्ट्रीय धरोहर के साथ विश्वासघात करनेवाले राजकर्मचारियोंको दण्ड मिलना और उनका दण्ड पानेसे न बचपाना राष्ट्रशोधक वह लंकादाह है जिसमें पापका वध करके से फूंक दिया जाता और राष्ट्रकी पवित्रताकी रक्षा होती रहती है । जब राष्ट्र अपने इस महत्वपूर्ण कर्तव्य के पालनमें उदासीनता बरतता है, तब राष्ट्रमें शासकोंकी शासितसे अलग एक ऐसी जाति बन जाती है जिसके स्वार्थ राष्ट्रीय स्वार्थसे अलग होकर टकराने लगते हैं । यदि राष्ट्र अपने धन, प्राण तथा शान्तिकी धरोहरकी रक्षाके कामको स्वार्थी, अधार्मिक तथा अयो हाथोंमें सौंप देता है तो वह कौमोंसे दद्दीकी रक्षा करानेकी भूल कर बैठता है । राष्ट्रकी धरोहरको अयोग्य लोगोंको सौंपना उन्हें जान बूझकर अपराधी बनने का अवसर देना है ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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