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________________ तो मुसाफिर ही हूँ, कुछ दिन इस शरीर रूपी धर्मशाला में रह कर और फिर छोड़ कर जाना ही होगा, वहां क्या होगा? ये सहाय न होंगे अतः चेत विकल्पजाल को छोड़, अपनी ओर दृष्टि दे।। ॥ ॐ ॐ १८-५४६. निन्दा का वातावरण अशान्ति का ही कारण है, निन्दा करने या निन्दा सुनने से लोभ तो कुछ भी नहीं प्रत्युत पाप का अवलेप ही है इससे कोसों दूर रहो। ॥ ॐ भ १६-५४७. निन्दा करने वाला स्वयं निन्ध है तथा न लोकों में उसका प्रभाव रहता निन्दा करने वाला तो इसी लिये निन्दा करता है कि मेरा बड़प्पन हो परन्तु होता उल्टा ही, अर्थात् उसका महत्व सब गिर जाता है । २०-५८१. प्रशंसा के समय अध्यात्मयोग रखने वाला प्रशंसा के चक्कर में दुःख न पावेगा। २१-१०४. अपनी प्रशंसा सुनने में रुचि होना पुण्य का
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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