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________________ [२१] सन्मान की रक्षा करना चाहिये इसमें स्व-पर दोनों को हानि नहीं उठाना पड़ती । 卐淡卐 १५-५८ मायावी का चित्त विरुद्धविकल्पबहुल होने से उड़नखटोला की तरह चित अस्थिर रहता है, सदैव कुलित रहता है और दूसरों के लिये अविश्वास्य घातक हो जाता है, उसकी फिर कोई इज्जत नहीं रहती अतश्च दर दर भटक कर दुखी होता है इसलिये सुख चाहने वाले ज्ञानमात्र आत्मा का आदर कर कुटिल भाव उत्पन्न न होने दें और व्यवहार करते समय सब के हित का ध्यान रखें व सरल व्यवहार करें, इसमें स्वय व दूसरों को हानि नहीं उठाना पड़ती । ॐ क १६ - ५८६. लोभ करने वाला अपनी शक्ति और सुखशान्ति का स्वयं विनाश करता है, शंका, भय, चिन्ता, कायरता, विवेक आदि दुर्गुणों का मूल लोभ है, लोभी पुरुष विचित्र कल्पनाओं व शकाओं से सदैव दुखी रहता है और दूसरों के लिये अहित बन जाता है, अतः सुखैषी समस्त पर पदार्थो से भिन्न आत्मस्वरूप को ही अपना मान कर निर्लोभ व्यवहार करना चाहिये जिससे प्राप्त
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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