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________________ [२०] का व्यवहार नहीं किया जाता । फॐ फ्र १२- २४४. यद्यपि दया, सत्य, स्वाध्याय आदि को व्यवहार से धर्म कहा पर इन्हीं में क्यों उपचार किया इसका कारण " निश्चय धर्म के विकास में निमित्तमात्र होना " है, बिना कुछ सम्बन्ध हुए किसी का किसी में आरोप नहीं किया जाता । ॐ क १३-५८६. क्रोध करने वाला अपनी शक्ति और सुख शान्ति का स्वय विनाश करता है और दूसरों के लिये भयंकर और विश्वास्य हो जाता है, अतः शान्ति के इच्छुकों को भेदज्ञानी रह कर क्रोध से दूर रहना चाहिये और व्यवहार भी शांतिमय करना चाहिये इसमें दोनों (स्त्र पर) को हानि नहीं उठाना पड़ती । ॐ 卐 १४- ५८७, मोन करने वाला अपनी शक्ति और सुख शान्ति का स्वयं विनोश करता है और दूसरों के लिये ग्लानि के योग्य और प्रिय हो जाता है, अतः सुख चाहने वालों को आत्मस्वरूप जानते हुए मिथ्या मान से बिल्कुल मुख मोड़ लेना चाहिये र व्यवहार करते समय उनके . "
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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