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________________ [ २६० ] १२ - ३४८. सदा किसी के साथ रहने या किसी को साथ रखने का नियमवद्ध वचन नहीं देना क्योंकि परिणाम परिवर्तनशील होते हैं । फ्र फ्र १३ - ३६६, ऐसी चेष्टा मत करो जिसमें तुम्हारा अहंकार प्रतीत हो या दूसरों को क्लेश उत्पन्न हो । फ्र ॐ फ्र १४- ३६१, अपनी दृष्टि का सदुपयोग कर अर्थात दृष्टिविषय देवता, शास्त्र, साधर्मी आदि धर्ममूल को ही बना, अन्यत्र दृष्टि मत कर । फ्र ॐ फ्र १५ - ३६६. वैसे तो सभी इन्द्रियज्ञान समता का प्रायः are है किन्तु द्वारा अवलोकन अधिक बाधक है अतः नेत्रोपयोग निजचर्या में ही करो, यथा लिखने में, पढ़ने में, चलने में, उठने बैठने में, चीज उठाने रखने . में, दर्शन में, पूजन में, बंदन में, वैयावृत्य में, भोजन में, धर्मात्मावों से वार्तालाप करने में, दुखियों को समझाने में, नित्यक्रिया में । 与淡出 १६ -४०५. विशिष्ट आपत्ति, व्याधि व प्रोग्राम के अतिरिक्त
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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