SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १८६ ] उसको अकेला भोगना पड़ेगा, कोई सहायक नहीं होगा। ५-६६१. जगत् में सर्व आत्मा अपने आप में ही परिणमन कर पाते हैं इसलिये कोई किसी का कुछ नहीं हो सकता व कुछ नहीं कर सकता, फिर भी प्राणो अनात्मीय को आत्मीय मान रहे हैं, यह सब मोह का नशा है इस कारण ज्ञानशक्तिमय भगवान् को दुःख का वेदन करना पड़ता। ६-७२५. कर कौन रहा है मोह ? आत्मा तो ज्ञानस्वभाव है उसकी तो निज क्रिया जानना है,...ढांचा मोह करता नहीं वह जड़ है। ॥ ॐ ॐ ७-७२६. मोह किससे किया जा रहा है ? आत्मा से तो कोई मोह करतो नहीं, उसे ठीक जानता ही मानता ही कौन है ? तथा ढांचे से कोई मोह करता नहीं, केवल ढांचे को तो जल्दी से जल्दी जलाने के लिये कोशिश होती है। ---७२७. कौन किससे मोह करता है ? मोह का वास्तविक
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy