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________________ [ १८३ ] ता ममता आदि विकारों से दूर हैं। 2-४६२. कितने इष्ट वियोग, अनिष्टसंयोग आदि आपत्ति यां तुमने पार की, उनमें विह्वल हुए और उस समय क्या और किस प्रकार आत्मार्थ विचारा था अब किसी बात को इष्ट बनाकर फिर वियोग व आपत्ति का क्लेश मिलाना उचित नहीं। ५-४६३. जितना समय रागविरोध से दूर रहने में बीते उतना तो सफल व सुख के उपाय में छला हुआ मान और जो राग विरोध में बीते चाहे उसमें तुम प्रसन्न भी हुए हो उसे बेकार व अपवित्रता में वहा हुआ मान । ६-५२१. किसी वस्तु को चाह करना अज्ञानता है, सर्व पदार्थ अपने से न्यारे हैं, फिर उनके संग्रहादि की जबदस्ती से आत्मा का क्या हित है ?...मोही प्राणी घोर दुःखी है...वाह्य में उपयोग लगाना ही दुःख है...वस्तुतः तो अमूर्त आत्मा को कौन पीड़ित कर सकता ? सर्व मोहादिविकार का ही क्लेश है।
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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