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________________ पवित्रता नहीं आ सकती । 55 [ १२१ ] ६ - ७८४, जिनके स्वपरानुग्राही चिन्तवन व ऐसा ही वचन व ऐसी ही चेष्टा होती है वे सरल योगी महात्मा धन्य हैं, उनसे किसी का हित नहीं होता और वे अपने शांति पथ में बढ़ते जाते हैं । ७-३७८०, सरलता को वाले कर सकते हैं । ॐ फ्र परीक्षा कुटिलों से अनन्य रहने फॐॐ फ्र ८- ७६८. माया किसी पदार्थ या परिस्थिति के स्नेह बिना नहीं होती सो सोच तो सही जगत का कौन सा पदार्थ तेरा हितकर है ? व सहज स्वभाव (जिसमें माया का अभाव है) के अतिरिक्त कौनसी स्थिति सुखद है ? फिर किस लिये आत्मा को कुटिल बनाया जावे | फफ 2-७६६, मांया एक बुरी शल्य है; इसके रहते हुए न व्रत है न शांति है, असार वैभव मिलो या न मिलो,... माया का बर्ताव उचित नहीं है; अपने पर करुणा करो | 5 ॐ 卐
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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