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________________ [ १२० ] २२ माया कषाय १-१७०. निर्माय सिद्ध करने के लिये अपने दुर्गुण कहकर भी माया को पुष्ट किया जा सकता है। २-१६१. यदि माया हो करना है तो ऐसा करो जो भले ही ऊपर से वाणी व चेष्टा राग की निकले पर मन में वैराग्य ही रहे। + ॐ ३-२११. निष्कपटता की परीक्षा स्वार्थ साधन के अवसर पर हो जाती है। ॥ ॐ . . ४-२५५. कल्याण चाहते हो तो मायो को होली कर दी यह शल्य है इसके त्याग के बिना व्रती नहीं हो सकता । इस शल्य के छूटने पर क्रोध, मान, लोभ आदि दुगुण अनायास शिथिल होकर निकल जावेंगे। ५-७४६. मायावी के पाक नहीं अर्थात् उसके हृदय में
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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