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________________ [ ६६ ] १६-४१२. तुमने जो कुछ किया अपनी शान्ति के अर्थ. रागमय चेष्टा की जो शान्ति के विपरीत थी, पर द्रव्य का तुम कर हो क्या सकते थे ? अतः कर्तृत्वबुद्धि को छोड़ और मैंने अमुक कार्य किया ऐसा सोचने के एवज में यह सोचो “मैंने यह अज्ञानमय चेष्टा की" । 卐 鸡卐 २० - ४४४, कौन किसका उपकार करता है ? केवल अपनी ६ . वेदना मेटने का ही सब प्रयत्न करते हैं अर्थात् जब राग • की वेदना नहीं सही जाती तब कमजोरी के कारण वाह्य में चेष्टा करना पड़ती है । ॐ फ्र २१- ४७६. जो लोग यश या प्रशंसा गाते हैं वे स्वयं की कषाय का प्रतीकार करते हैं, तुम्हारा कुछ नहीं करते हैं, झूठमूठ कतु स्वबुद्धि करके फूलना मूढों का कार्य है । 卐卐 1 २२-४७७, जो लोग अपवाद या निन्दा करते हैं वे स्वयं की कषाय का प्रतीकार करते हैं, तुम्हारा कुछ नहीं करते, झूठमूठ उन्हें अपना विकर्ता मान कर दुखी होना. मूठों का कार्य है ।
SR No.009899
Book TitleAtma Sambodhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManohar Maharaj
PublisherSahajanand Satsang Seva Samiti
Publication Year1955
Total Pages334
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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