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________________ XXXX मागणी करी त्यारे क्षणमात्रनो विलम्ब कर्या वगर तेमणे ते स्वीकारी लीधी अने उदारतापूर्वक पोतानी पासेनी कहावलीना प्रथम परिच्छेदनी ताडपत्रीय प्रतिनी झेरोक्ष नकल, जूनी प्रेसकोपी तथा अन्य सामग्री सोपी दीधी. अमारा परमगुरुभगवन्त प्राकृतविशारद पू. आचार्यभगवन्त श्रीविजयकस्तूरसूरीश्वरजी महाराजे कहावली ग्रन्थनी प्रेसकोपी करावी रखावेल, तेनी नकल, ताडपत्रीय प्रतिनी झेरोक्ष नकल तथा अन्य सर्व उपयोगी साहित्य-सामग्री श्रीनेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरिज्ञानमन्दिर(सूरत) अने अन्य स्थळोथी मेळवी आपवा बदल पू.आ. श्रीविजयसोमचन्द्रसूरिजी म. तथा तेमना उत्साही अने संशोधनप्रेमी शिष्यो, के जेओ मारा मित्रो पण छे तेवा, मुनिश्रीसुयशचन्द्रविजयजीमुनिश्रीसुजसचन्द्रविजयजीनो कृतज्ञताभावे आभार मानुं छु. आ ग्रन्थना सम्पादन माटे श्रीहेमचन्द्राचार्य ज्ञानमन्दिर, पाटणगत संघवीना पाडाना भण्डारनी ताडपत्रीय पोथीनी झेरोक्ष नकल वापरवा आपवा बदल तेना वहीवटदारोनो पण हार्दिक आभार मानुं छु. वळी, आ सम्पादन माटे उपयुक्त ग्रन्थो - १. श्रीसमवायांगसूत्र २. श्रीआवश्यकचूणि श्रीआवश्यकनियुक्ति, (त्रणेय पू. सागरजी म. द्वारा सम्पादित) श्रीप्रवचनसारोद्धार श्रीपउमचरियं भाग १-२ ६. श्रीचउप्पन्नमहापुरिसचरियं, (बन्ने प्राकृत ग्रन्थ परिषद् द्वारा प्रकाशित) ७. वसुदेवहिण्डी (प्रका. गूजरात साहित्य अकादमी) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरितमहाकाव्य पर्व १-९ (४ पुस्तको, प्रका. कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य नवम-जन्मशताब्दी स्मृति शिक्षण संस्कारनिधि) पाइयसद्दमहण्णवो देशीनाममाला ११. देशीशब्दकोश (प्रका. जैन विश्व भारती, लाडन) १२. प्राकृतश्लोकानामकारादिक्रमेण अनुक्रमणिका (सम्पा. मुनिश्रीविनयरक्षित वि.) १३. प्राकृत विशेषनामोनो परिचयात्मक कोश (प्रका. श्री १०८ तीर्थदर्शनभवन ट्रस्ट, पालीताणा) ना सम्पादको तथा प्रकाशकोनो पण आ अवसरे कृतज्ञतापूर्वक आभार मानुं छु. अने छेल्ले, सुन्दरशुद्ध मुद्रण करी आपवा बदल क्रिश्ना ग्राफिक्सना श्रीहरजीभाई तथा श्रीकिरीटभाई पटेलनो पण हार्दिक आभार मानुं छु. आ ग्रन्थना प्रारम्भमां पं. श्रीदलसुख मालवणियानुं कहावली पर, अवलोकन (अंग्रेजी) अने डॉ.श्रीमधुसूदन ढांकीनुं कहावलीना कर्ता भद्रेश्वरसूरिना समय विशेर्नु विश्लेषणात्मक अवलोकन साभार प्रकाशित कर्यु छे, जेथी बधी ज सामग्री साथे अवलोकी विद्वज्जनो परतो ऊहापोह करी शके. प्रान्ते, आ सम्पादनमा जे कांई खामीओ - त्रुटिओ रही जणाय ते परत्वे विद्वज्जनो तथा अधिकारी जनो सूचन करशे तो खूब ज आनन्द थशे. १०. अषाड सुदि बीज, मुनि कल्याणकीर्तिविजय भावनगर
SR No.009889
Book TitleKahavali Pratham Paricched Pratham Khand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyankirtivijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages469
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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