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________________ (३८) श्रीमन्त्र राजगुणकल्पमहोदधि ॥ मादिं कृत्वाऽधस्तन कोष्ठकाद् गणनेऽपि ईदृशमेवेदं नष्टरूपमायाति यथाऽन्त्य पंक्ती सर्वज्येष्ठ नेक कमादौ कृत्वाऽधस्तनकोष्ठकाद गणनेऽक्षाक्रान्तस्थाने स्थितश्चतुष्कः, ततः स एव तत्र नष्टो लेख्यः, चतुर्थपंक्तौ पूर्वं पञ्चमपंक्ति स्थापितं चतुष्कं टालमित्वा (१) उधस्तनको 'ठात् सर्वज्येष्ठमेककमादिं कृत्वा गणनेऽक्षाक्रान्तत्वाभावात् ( २ ) शून्यको 'ठके स्थितः पञ्चक एव नष्टस्थाने लेख्यः, तृतीयपंक्तौ तथैव गणनेऽक्षाक्रान्तस्थाने स्थित एककः, अतः स एव तत्र नष्टो लेख्यः, द्वितीयपंक्ती प्राग्वत् ज्येष्ठमप्येककं पूर्व स्थापितत्वात् टालयित्वा शेषं ज्येष्ठं द्विकमादिं कृत्वा गणनेऽक्षाक्रान्तस्थाने स्थितो द्विकः स एष तत्र लेख्यः, श्राद्यपंक्तौ सर्व ज्येष्ठौ एककद्विको पूर्वस्था पितरखेन त्यक्त्वा ज्येष्ठं त्रिकमादौ दवा गणनेऽक्षाक्रान्तस्थाने स्थितस्त्रिकः, ततः स तत्रलेख्यः, ३२९५४ ईदृशं त्रिशत्तमरूपं ज्ञेयम्, अनयारीत्या सर्वनष्ट रूपाणि ज्ञेयानि ||२४|| दीपिका - अब दूसरी गाथाका अर्थ कहते हैं: - अक्षोंके स्थान अर्थात् अक्षोंसे प्राक्रान्त (३) जो कोष्ठक हैं उनके समान अर्थात् उनकी संख्याके तुल्य; तात्पर्य यह है कि अशोंसे आक्रान्त कोष्ठकों की पहिला, दूसरा, तीसरा, चौथा, और पाचवां इत्यादि रूप जो सख्या है वही संख्या उन पंक्तियों में नष्ट रूपों की भी जाननी चाहिये, आशय (४) यह है कि जौन सा अज्ञाकान्त (५) कोष्टक (६) है वही नष्ट रूप है, शेष पंक्तियों में अर्थात् अक्षों से अनाक्रान्त (9) पंक्तियों में शून्य कोष्ठक की संख्या के तुल्य नष्ट रूपों को लिखना चाहिये, उदाहरण यह है कि desi भङ्ग नष्ट है वह कैसा है ? यह किसीने पूछा, इसलिये पांच पद के कोष्ठक के यन्त्र में पांचवीं पंक्ति में २४ है, तीसरी पंक्ति में चार है, दूसरी पंक्ति में एक है, इन श्रङ्कों को जोड़ने से उनतीस हुए तथा मूल पंक्ति का एक जोड़नेपर तीस हो गये, अर्थात् यह नष्ट भङ्ग की संख्या हो गई, इस लिये अभिज्ञान (८) के लिये इन कोष्ठकों में अक्षों को डाला, इसके पश्चात् पांचवीं पंक्ति में सर्वलघु (९) पांच को आदि करके (१०) पश्चानुपूर्वीके द्वारा vindi चौथा इत्यादि गिनने पर अक्षाक्रान्त कोष्ठमें चार स्थित है; इसलिये १- वर्जयित्वा ॥ २- अक्षैर्योगाभावात् ॥ ३-युक्ता ॥ ४- तात्पर्य ॥ ५- मक्षसे युक्त ॥ ६ - कोठा ॥ ७ - रहित ॥ ८- पहिचान ६- सबसे छोटे ॥ १०-पांच से लेकर ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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